Thursday, December 18, 2008

हिन्दी पुस्तकालय काल दर्शक पंचांग !!!!!!!!!!


हिन्दी पुस्तकालय काल दर्शक पंचांग

Monday, December 8, 2008

कालसर्पयोग शांति महायज्ञ, २७ दिसम्बर २००८

फॅमिली पंडित.कॉम द्वारा वृन्दावन धाम में काल सर्प दोष निवारण महायज्ञ का आयोजन कराया जा रहा है 27 December 2008, जो जातक काल सर्प दोष से पीड़ित हैं और अपने जीवन में प्रगति नहीं कर पा रहे हैं, देव पित्र अमावस्या पर वृन्दावन के सुविज्ञ शास्त्रिओं द्वारा कराये जा रहे अदभुत महायज्ञ में योगदान करके ग्रहों की वाधाएं दूर कर सकते हैं॥ अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें... +919358144181

Monday, October 27, 2008

शुभ मुहूर्त पूजन के लिए

दीपावली का पूजन वर्ष भर की सुख समृद्धि का स्थायी कारक बन सकता है। फैमिली पंडित डॉट कॉम के आचार्य-शास्त्रियों ने सभी के लिए शुभ मुहूर्त निकाले हैं, जिनमें पूजन करने से न केवल आनंददायक अनूभति होगी, बल्कि घर-परिवार में सौभाग्य और समृद्धि की वृद्धि होगी। इन मुहूर्त में मन और विधि-विधान से मां लक्ष्मी का पूजन किया जाए तो घर में लक्ष्मी का स्थायी वास रहेगा।
दुकान, फैक्टरी, प्रतिष्ठान आदि के लिए दिन में मुहूर्त हैं तो घऱ की पूजा के लिए सायंकाल और रात्रि के मुहूर्त हैं। मंगलवार दीपावली के दिन चित्रा और स्वाति नक्षत्र का सुखद संयोग बना है। गणेश-लक्ष्मी के पूजन का क्रम पूरे दिन अलग-अलग समय में और मध्य रात्रि तक जारी रहेगा। आचार्यों का कहना है कि लग्नेश के स्वग्रही होने से भी विशेष लाभ का योग बन रहा है।
पंडित पवन दत्त शर्मा के अनुसार मंगलवार को प्रातः 10.19 से 12.23 तक धनु लग्न तथा 10.42 से 12.42 दोपहर तक लाभ का चौघड़िया है। दोपहर 12.14 से 12.23 तक अमृत का चौघड़िया रहेगा। इन अवधि में कारखानों, दुकानों और मशीन आदि के कायर्स्थल पर लक्ष्मी-गणेश का पूजन सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
प्रदोष काल में आर्थिक प्रगति के लिए एक और श्रेष्ठ मुहूर्त वृष लग्न का है, जो सायंकाल में 6.26 बजे से रात्रि 8.23 बजे तक रहेगी। इसके बीच में लाभ का चौघड़िया सायं 7.02 से रात 8.38 बजे तक रहेगी, जो विशेष फल देने वाली है। रात में 8.29 से 10.42 तक मिथन लग्न और रात्रि में 10.42 से 1.02 बजे तक कर्क लग्न रहेगी। कर्क लग्न में पूजन करना अत्यंत लाभकारी रहेगा। निशीथ काल का पूजन सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसके बाद सिंह लग्न सुबह के 4.35 बजे तक है, जिसमें पूजन और हवन का विशेष महत्व बताया गया है। मकर लग्न दोपहर 12.12 बजे से 2.05 तक है, इसमें पूजन से बचना चाहिए। कुछ विद्वानों के मुताबिक रात में कर्क लग्न के मुहूर्त में केतु की अशुभ दृष्टि रहेगी, लिहाजा उन्होंने इसमें पूजन न करने की सलाह दी है। सभी पूजन काल का समय दिल्ली के समयानुसार लिया गया है। सभी जन अपने स्थानीय समयानुसार पूजन मुहूर्त आचार्यों से निकालवा लें।

कैसे करें पूजन
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पूजन की प्रक्रिया शुरू करते ही सबसे पहले आसन शुद्धि और स्वस्ति पाठ करें और जल अक्षत लेकर पूजन का संकल्प लें। गणेश प्रतिमा का स्थापन कर षोड़षोपचार पूजन करें, फिर नवग्रह पूजन, षोड़शमातृका पूजन करें। तत्पश्चात कलश और महालक्ष्मी पूजन करें। संभव हो और स्फटिक के श्री यंत्र हों तो इनका दूध, दही आदि (पंचामृतस्नान) से अभिषेक करें। शुद्ध जल से स्नान के बाद उन्हें वस्त्र धारण कराएं। आभूषण पहनाएं। प्रसाद लगाएं। वस्त्र नहीं हैं तो कलावा अर्पित करें। केसर, चंदन, सिंदूर, सुगंधित तेल, अक्षत आदि चढ़ाएं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंकुम व पुष्प से मां के एक-एक अंग की पूजा करें। अष्ट सिद्धि, अष्ठ लक्ष्मी पूजन करें और
ऋतु फल समर्पित करें। तांबूल पूगी फल चढ़ाएं। और श्रद्धापूर्वक दक्षिणा चढ़ाएं। नमस्कार करने के बाद देहली विनायक पूजन, कलम-दावात पूजन, कुबेर पूजन, दीपक पूजन करें और आरती करें। अंत में क्षमा प्रार्थना भी करें।

Sunday, September 28, 2008

ज्योतिष शास्त्र नक्षत्र, योग, ग्रह तथा राशि आदि के तत्वों के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव व गुणों का निश्चय कर यह बतलाता है कि अमुक नक्षत्र, ग्रह और राशि के प्रभाव से उत्पन्न पुरुष का अमुक नक्षत्र, ग्रह और राशि से उत्पन्न नारी के साथ संबंध करना अनुकूल रहेगा या नहीं। ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। आचार्यों ने जन्म के समय चंद्रमा की स्थिति के आधार पर ही जन्म राशि तथा जन्म नक्षत्र के द्वारा मेलापक पद्वति का ज्ञान करना बताया है।
मेलापक पद्वति में जिन आठ बातों पर कुंडली मिलान की प्रक्रिया अपनायी जाती है, उनमें से एक से लेकर आठ तक का योग 36 बनता है। तथा निम्न क्रमानुसार उनके गुणों की संख्या निर्धारित है, जैसेः
वर्णः एक गुण
वश्यः दो गुण
ताराः तीन गुण
योनिः चार गुण
ग्रह मैत्रीः पांच गुण
गण मैत्रीः छह गुण
भकूटः सात गुण
नाड़ीः आठ गुण
इस तरह कुल योग 36 हुआ। गुणों की संख्या के आधार पर मिलान करने का नियम निर्धारित है। जितने अधिक गुण मिलते हैं, उसको उतना ही अच्छा माना गया है।
यहां अलग-अलग विधि का ज्ञान आपको कराने का प्यास किया जा रहा है, ताकि जन साधारण भी इस वैज्ञानिक पद्वति को समझ कर इसका लाभ पूरी तरह से उठा सके। साथ ही यहां यह भी बताया जाएगा कि आठ बिंदुओं में से प्रत्येक बिंदू अलग-अलग किन गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। सबसे पहले लेते हैं वर्ण को...
वर्णः-ऋषियों ने बारह राशियों को चार प्रकार के वर्ण में विभाजित कर उनके बारे में बताया है। ये चार विभाजन ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के रूप में बताये गये हैं। इसी तरह हरेक वर्ण से संबंधित राशियां भी निर्धारित हैं। ब्राह्मण गुण वाली राशियां कर्क, वृश्चिक तथा मीन हैं। क्षत्रिय वर्ण वाली राशियां मेष, सिंह तथा धनु हैं। वैश्य वर्ण वाली राशियां वृष, कन्या तथा मकर हैं और क्षूद्र वर्ण वाली राशियां मिथुन, तुला व कुंभ हैं। उक्त राशियो से संबंधित जातक संबंधित वर्ण के गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ब्राह्मण वर्ण वाली राशियां ज्ञान, शिक्षा, खोज आदि के कार्यो में प्रवीणता लिए हुए होती हैं। क्षत्रिय वर्ण वाली राशियां सामाजिक रक्षा, सेना, पुलिस आदि सशस्त्र वलों के कार्यों की संचालन योग्यता रखने वाली होती हैं। वैश्य वर्ण सामाजिक आश्यकताओं की पूर्ति और उत्पत्ति आदि के विषय में योग्यता रखती है। शूद्र वर्ण वाली राशियां परिश्रम आदि के विषय में प्रवीणता रखती हैं।
कुंडली मिलान में उपरोक्त वर्णित विशेषताओं के प्रतिनिधित्व के गुणों द्वारा इस बात पर जोर दिया गया है कि कन्या का वर्ण वर के वर्ण से श्रेष्ठ नहीं होना चाहिए, जैसे कन्या वर्ण शूद्र है तो वर के किसी भी वर्ण से (36 गुणों में) एक गुण प्राप्त होगा। कन्या का वैश्य वर्ण होने पर वर के अन्य वर्णों से भी एक गुण प्राप्त होगा, परंतु यदि वर्ण शद्र वर्ण से संबंधित है तो शून्य गुण ही प्राप्त हो पाएगा।
कन्या का क्षत्रिय वर्ण होने पर वर केवल ब्राह्मण या क्षत्रिय वर्ण का ही होना चाहिए, तभी एक गुण प्राप्त होगा। अन्य वर्णों वैश्य या शूद्र वर्ण के वर से शून्य गुण ही प्राप्त हो पाएगा। इसी तरह यदि कन्या ब्राह्मण वर्ण की है तो वर का वर्ण भी ब्राह्मण होना चाहिए, तभी एक गुण प्राप्त होगा। अन्य तीनों वर्णों के वर से शून्य गुण ही प्राप्त हो पाएगा।
वश्यः-यह दूसरा बिंदू है, जिससे कुछ राशियों का संबंध चतुष्पादों से कुछ का द्विपाद से तथा अन्य राशियों का कीट, सर्प एवं जलचर से संबध बताया गया है। दोनों वर-वधु की कुंडली के मिलान का तात्पर्य वश्य के पूरी तरह मिलने से दो गुण (36 गुण में से) तथा कुछ समानता पाए जाने पर एक गुण और असमानता पाए जाने पर शून्य गुण प्राप्त होते हैं। इन्हीं गुणों का योग आगे जाकर कुंडली मिलान में कुल जितने गुण मिलते हैं, के योग में समाहित करते हैं।
शेष छह बिंदुओं के बारे में अगले लेख में बताया जाएगा।
आचार्य एल.डी.शर्मा
(लेखक मथुरा में ज्योतिष समाधान केंद्र के संचालक और familypandit.com सीनियर पैनलिस्ट हैं।)

Saturday, September 27, 2008

शादी से पहले कैसे मिलाएं गुण

(आज से हम गुण मेलापक कुंडली पर ज्योतिष सिद्धांत के जरिये जातकों को मेलापक विषय पर विस्तार से जानकारी उपलब्ध करा रहे है। उत्सुक गण इस विषय की गहराई में जाकर इसका लाभ उठ सकते हैं। प्रस्तुत है इसकी भूमिका..)
लव मैरिज करने वाले भी जन्म कुंडली मिलाने पर जोर दे रहे हैं, यह न केवल उनके लिए शुभ बात है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी शुभ सोच है। इन दिनों फैमिली पंडित डॉट कॉम पर प्रेमी युगल कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहे हैं। उनके द्वारा गुण मेलापक के बारे में जानने के लिए सैकड़ों की संख्या में मेल की गयी हैं।
अतः लोगों को यह बताना जरूरी हो गया है कि किस तरह गुण मेलापक चार्ट में नाड़ी दोष होने के बावजूद किस प्रकार उक्त दोष उन कुंडलियों पर लागू नहीं होता।
नाड़ी दोष का दुष्प्रभाव वर एव कन्या की प्रजनन शक्ति, स्वास्थ्य तथा आय़ु पर सीधा-सीधा पड़ता है। वर-वधु के समान जीन्स होने पर संतति पर स्पष्ट रूप से दुष्प्रभाव परिलक्षित माना जाता है। सामान्यतः गुणमेलापक चार्ट में विद्यमान नाड़ी दोष किन स्थितियों में अपना दुषप्रभाव नहीं छोड़ता, उन्हीं स्थितियों के बारे में ही यहां बताया जा रहा है।
योनि, गण एवं भकूट दोष का संतुलन ग्रह मैत्री होने से बना रहता है। चंद्र राशि के अधिपति (वर-वधु) जिस नवांश में हों, उन नवांश के अधिपति यदि आपस में मित्र हैं तो नाड़ी दोष शांत हो जाता है।
समान नक्षत्र होने से मेलापक चार्ट में नाड़ी दोष अंकित रहता है, परंतु ऐसा होने पर विभिन्न नक्षत्र चरणों में होने से तथा पद बाधा नहीं होने से नाड़ी दोष नहीं लगता। पद एक-तीन, दो-चार होने चाहिए। राशि एक होने पर तथा नक्षत्र अलग-अलग होने से नाड़ी दोष नहीं लगता।
राशि अलग होने से एवं नक्षत्र एक ही होने से नाड़ी दोष नहीं लगता। दोनों की चंद्र राशि का अधिपति एक होने से भी दोष का दुष्प्रभाव नहीं होता। राशि अलग-अलग हो, किंतु राशि स्वामी एक ही हो, तब भी दोष नहीं माना जाता।
गुण मेलापक कुंडली में नाड़ी दोष होने पर यदि राशि स्वामी शुभ ग्रह हो, जैसे गुरु, शुक्र, अंशानुसार चंद् और बुध हो तो नाड़ी दोष नहीं लगता। इसी प्रकार नाड़ी दोष उदासीन होने से अन्य दोष भी उदासीन हो जाते हैं।
गुण मेलापक पद्वति में जिन बातों का वर्णन है, वह आठ प्रकार की होती हैं तथा एक से आठ तक की संख्या के योग पर ऋषियों द्वारा 36 गुण निर्धारित किए गए हैं। ज्योतिष शास्त्र सूचनापरक पद्वति के आधाऱ पर पूर्व सूचना का आभास कराता है। विवाह के पहले वर-कन्या की जन्म कुंडली मिलान का आशय केवल परंपरा का निर्वाह नहीं है,यह भावी दंपत्ति के स्वभाव, गुण,प्यार तथा आचार व्यवहार के सबंध में ज्ञात कराने में सहायक होता है। जब तक समान आचार-विचार वाले वर-कन्या नहीं मिलते,तब तक मैरिज लाइफ सुखी नही हो सकती। जन्मपत्री में मेलापक पद्वति वर-कन्या के स्वभाव, रूप और गुणों को अभिव्यक्त करती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह पद्वति विशुद्ध विज्ञान पर आधारित है।


आचार्य एल. डी शर्मा
सीनियर पैनलिस्ट
मोबाइल नंबर..919897073500
बेसिक-0565-2403623

Tuesday, September 16, 2008

सटीक एवं सूक्ष्म फलादेश की विधा है कृष्णमूर्ति पद्धति

भारतीय ज्योतिष और कृष्णमूर्ति पद्धति में मुख्य भेद इस बात को लेकर है कि जुड़वां बच्चे, जो चंद मिनट के अंतराल से पैदा होते हैं, उन दोनों की एक लग्न तथा एक समान भावों में ग्रह स्थित होने के बावजूद लक्षण अलग-अलग कैसे हो जाते हैं। पारंपरिक ज्योतिष के अनुसार दोनों के भाग्य एक जैसे होने चाहिए, लेकिन उनके भाग्य में बड़ा अंतर पाया जाता है। एक की मृत्यु हो जाती है, दूसरा लंबी आयु पाता है। या एक कपड़े का व्यापारी होता है तो दूसरा इंजीनियर बन जाता है।
कृष्णमूर्ति ने उप नक्षत्रीय सूत्र देकर इस प्रश्न को सहज ही हल कर दिया है। उन्होंने बताया कि दोनों की कुंडली में मुख्य अंतर भावों के उप नक्षत्रों से आता है। चाहें जन्म कुछ ही मिनट के अंतराल से क्यों न हुआ हो, भावों के उप नक्षत्र बदल जाएंगे। यदि इन उप नक्षत्रों पर विचार किया जाए तो जुड़वां बच्चों के भाग्यों का अंतर विस्तार से समझ सकते हैं। उनके सूत्र से विभिन्न भावों के उप नक्षत्रों को विभिन्न भावों के कारक निश्चित करके जीवन की तमाम घटनाओं के बारे में जान सकते हैं।
मुझे खेद है कि कृष्णमूर्ति के अनुयायी कारकों को उचित स्थान देने में भूल कर रहे हैं व वही भूल दोहरा रहे हैं, जो कुछ मिनटों के अंतर से जन्म लेने वाले बच्चों की कुंडली में फर्क करता है, जिनकी वही लग्न है और ग्रह भी उन्हीं भावों में बैठे हैं।
मान लीजिए कि एक कुंडली में मंगल सिंह राशि में 14 अंश पर है। यह शुक्र के नक्षत्र में तथा शुक्र के ही उप नक्षत्र में होगा। यदि कुंडली में शुक्र बारहवें भाव में है तो यह कहेंगे कि मंगल अपनी दशा में 12 वें भाव का फल प्रदान करेगा, जैसे हानि, व्यय, परेशानी व पराजय इत्यादि। और यही दूसरे की कुंडली में जिसने कुछ मिनट के अंतर से जन्म लिया है,तो क्या शुक्र उसमें भी 12 वें भाव का कारक होकर वही व्यथा-कथा कहेगा। वस्तुतः स्थिति यह नहीं है, क्योंकि अलग-अलग भावों के उप नक्षत्रों पर विचार नहीं किया गया है।
मेरा मानना है कि यदि शुक्र दसवें और 11 वें भाव का उप नक्षत्र है, तब मंगल दसवें एवं 11 वे भाव का फल बताएगा जैसे लाभ, जीत व प्रसन्नता आदि, इस स्थिति के साथ कि मंगल और शुक्र दोनों 12 वें भाव में बैठे हों। दूसरे व्यक्ति जिसने कुछ मिनट के बाद जन्म लिया है, उसका शुक्र 12 वें भाव का उप नक्षत्र हो सकता है, इसलिए उसके लिए मंगल 12वें भाव का कारक होगा। अतः कारकों का निर्धारण करने के लिए विभिन्न भावों के उप नक्षत्रों को चुनना चाहिए। इसके लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना जरूरी है। जैसे-
1-जन्म के समय अथवा प्रश्न के समय के प्रत्येक भाव के सही अंश अंकित करें और प्रत्येक भाव की राशि, नक्षत्र स्वामी और उप नक्षत्र स्वामी अंकित करें।
2-जन्म के समय अथवा प्रश्न के समय के ग्रहों के सही अंश, राशि स्वामी, नक्षत्र स्वामी और उप नक्षत्र स्वामी अंकित करें।
3- हरेक भाव के कारक ग्रहों को भाव के नक्षत्र स्वामी और उप नक्षत्र स्वामी के अनुसार निश्चित करें।
4- सूक्ष्म को अत्यावश्यक स्थान मिलना चाहिए। इसके बाद प्रत्यंतर फिर अंतर और अंत में महादशा को स्थान देना चाहिए।
5-यदि छठे भाव का उप नक्षत्रेश वक्री हो तो यह विपक्षी को बुरा होता है, क्योंकि तब यह विपक्षी के लिए बारहवां स्थान होता है। इसलिए छठे भाव का वक्री उप नक्षत्रेश प्रतिस्पर्धा के कार्यों के लिए शुभ होता है, जहां विपक्षी से मुकाबला हो। इसी प्रकार 4,5,7 एवं 8 भावों को भी समझना चाहिए।
कृष्णमूर्ति ने जो दिशा हमें दी है, वह उनके उक्त कथन के आधार पर ज्योतिष के सत्य को प्रमाणित करने में सक्षम है। आवश्यकता है धैर्य एवं सूक्ष्म बुद्धि से उनके सूत्रों के विवेचन की, जिनमें वास्तविकता एवं सार्थकता स्पष्ट दिखायी देती है।

(लेखक कृष्णमूर्ति जी के विचारों से ही प्रभावित नहीं रहे, बल्कि उनके बताए मार्ग पर चलकर उन्होंने हजारों जातकों को सही मार्गदर्शन दिया है। वर्तमान वह कृष्णमूर्त ज्योतिष पर एक किताब नक्षत्र ज्योतिष लिख रहे हैं, जो शीघ्र प्रकाशित होने वाली है)।

-इंजीनियर रवींद्र नाथ चतुर्वेदी

Thursday, September 11, 2008

महा छप्पन भोग दर्शन १४ को


गोवर्धन में छप्पन भोग के दर्शन को पधारें-

रसिक बंधुवर,
हमारी कामना है कि श्री गिरिराज प्रभु का अलौकिक 16 वां छप्पन भोग महोत्सव एवं महा अभिषेक के अवसर पर आप सपरिवार साक्षी बन प्रभु के दुर्लभ दर्शन कर सहज सुखद अनुभूति का आनंद लें।
आपके आगमन की आकांक्षी
श्री गिरिराज सेवा समिति रजि। मथुरा

गोवर्धन श्री गिरिराज जी में अनंत चतुर्दशी के दिन श्री गिरिराज महाराज का अलौकिक छप्पन भोग 14 सितंबर को हो रहा है। श्री गिरिराज सेवा समिति द्वारा आयोजित होने वाला यह सोलहवां छप्पन भोग आयोजन है, जिसमें देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। आप भी गिरिराज महाराज के इन दुर्लभ दर्शन करके पुण्य लाभ अर्जित कर सकते हैं। यह जानकारी संस्थापक सदस्य मुरारी अग्रवाल ने दी है।

कार्यक्रम-
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महाभिषेक
13 सितंबर 2008
शनिवार प्रातः नौ बजे से

संत सेवा एवं महाप्रसाद
14 सितंबर 08
रविवार दोपहर 12 बजे से सायं 4 बजे तक

श्री छप्पन भोग दर्शन
14 सितंबर 08
रविवार अनंत चतुर्दशी दोपहर 2 बजे से रात्रि 12 बजे तक

स्थानः
गिरिराज तलहटी छप्पन भोग स्थल
संत पं. गया प्रसाद जी की समाधि के निकट
आन्यौर परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,मथुरा

ज्यादा जानकारी को संपर्क करें
09412281056
09837500191
09412777909

Tuesday, September 9, 2008

चमत्कारिक मंदिर है बालाजी मेंहदीपुर

बालाजी मेंहदीपुर के परम भक्त पं.रवींद्र नाथ चतुर्वेदी कृष्णमूर्ति पद्धति के धुरंधर विद्वान भी हैं। निस्वार्थ भाव से ज्योतिष सेवा करने वाले पं.चतुर्वेदी की प्रेरणा से हजारों लोगों ने बालाजी के दरबार में पहुंचकर अपने कष्ट मिटाए हैं। यह मंदिर ऊपरी आत्माओं की मुक्ति से भी छुटकारा दिलाता है।

कहावत है कि चमत्कार को नमस्कार। राजस्थान के दौसा जिले में मेंहदीपुर स्थित बालाजी का चमत्कारिक मंदिर है। बाल स्वरूप हनुमान का स्वरूप ही बालाजी के नाम से पुकारा जाता है। इस मंदिर में तीन देवताओं का वास है।

बाल रूप हनुमान जी
भैरों बाबा
प्रेतराज सरकार
हरेक दर्शनार्थी तीनों देवों के दर्शन कर खुद को कृतार्थ मानते हैं। कामना पूर्ति के लिए यहां अर्जी लगायी जाती है। इसका नियम इस तरह से है। सबसे पहले हलवाई से दरख्वास्त लेते हैं। यह कागज पर लिखी दरख्वास्त नहीं होती अपितु यह एक दौने में छह बूंदी के लड्डू, कुछ बताशे तथा घी का एक छोटा दीपक होता है। जिसकी कीमत ढाई रुपए होती है। यह लेकर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। वहां पुजारी को वह दौना दे देते हैं। पुजारी उस दौने में से कुछ लड्डू-बताशे जल रहे अग्नि कुंड में डालता है, ठीक उसी समय आप अपने मन में ही बालाजी से कहते हैं-बालाजी आपके दरबार में हाजिर हूं। मेरी रक्षा करते रहना। पुजारी शेष दौने को आपको वापस कर देता है। तब उसमें से दो लड्डू निकाल कर अपनी कमीज की जेब में रख लेते हैं। शेष दौने को भैरों जी के मंदिर में पुजारी को दे देते हैं। वह भी उस दौने में से कुछ सामग्री लेकर हवन कुंड में डाल देता है। ठीक उसी समय उनसे भी मन ही मन आप कहते हैं-बाबा आपके दरबार में हाजिर हूं, मेरी रक्षा करते रहना। फिर वही दौना प्रेतराज के दरबार में पुजारी को देते हैं। वहां भी वही प्रक्रिया पुजारी व आप दौहराते हैं। यहां का पुजारी भी शेष दौना दे देता है। वहां एक चबूतरा है, जहां पर वह दौना फैंक देते हैं। मंदिर से बाहर आकर जो लड्डू हनुमान जी के भोग लगाने के बाद जेब में रखे थे, उन्हें निकाल कर खा लेते हैं। यह प्रथम चरण हुआ।

ऐसे लगाते हैं अर्जी---------------
इसकी कीमत 181 रुपए 25 पैसे होती है। इतने रुपए देकर आप हलवाई से अर्जी का सामान ले सकते हैं। हलवाई एक थाल में सवा किलो बूंदी के लड्डू तथा एक कटोरी में घी थाल में रखकर देता है। वह थाल हालाजी के मंदिर में पुजारी को देते हैं। वह कुछ लड्डू व घी भोग के लिए निकाल लेता है। कुछ लड्डू हवन कुंड में डालता है। ठीक उसी समय आपको बालाजी से जो आपकी इच्छा हो, प्रार्थना कर लेनी चाहिए। पुजारी थाल में खाली घी की कटोरी तथा छह लड्डू आपको वापस कर देता है। वह थाल आप सीधे हलवाई को दे दें। हलवाई आपको एक थाल उबले चावलों व दूसरा उबले हुए साबुत उरद का देगा। छह लड्डू में से दो उरद के थाल में रख देगा। दो लड्डू चावल के थाल में रख देगा। दो लड्डू लिफाफे में रखकर दे देगा। उसे प्रायः अपनी जेब में रख लें।
दोनों थालों को लेकर बाहर के रास्ते से भैंरों जी के मंदिर के पुजारी के समक्ष रखते हैं। पुजारी उसमें से कुछ शामग्री हवन कुंड में डलते हैं। ठीक उसी समय भैंरों जी से वही मांगें जो बालाजी से मांगा था। फिर दोनों थाल उठाकर प्रेत राज जी के मंदिर के पुजारी के सामने रखें। जब वह कुछ सामग्री हवन कुंड में डाले तो प्रेत राज जी से भी वही मांगें, जो बालाजी व भैंरों जी से मांगा था। फिर दोनों थाल उठाकर पीछे चबूतरे पर शेष सामग्री डाल देते हैं। तथा दोनों खाली थाल हलवाई को दे देते हैं। हाथ धो कर जो दो लड्डू जेब में रखे थे, उन्हें खा लेते हैं। यह लड्डू अर्जी लगाने वाला ही खाता है। िकसी और को नहीं देना चाहिए।
इसके उपरांत एक दरख्वास्त लेकर फिर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। पुजारी को देते हैं। हवन कुंड में डालते समय प्रार्थना करते हैं। (पहले वाली प्रार्थना को दोहराते हैं। )दो लड्डू दोने से निकाल कर जेब में रख लेते हैं। फिर उसी क्रम से भैंरों जी व प्रेतराज जी से मांगते हैं। दोना फेंक कर नीचे आने पर हनुमान जी के निकाले भोग के लड्डू खा लेते हैं। यहां आपकी अर्जी का क्रम पूरा हो जाता है।
मंदिर छोड़ने तथा घर वापस चलने से पहले चलते समय की एक दरख्वास्त फिर लगाते हैं। इसमें तीनों देवों से पहले बताए क्रम के अनुसार पारिवारिक सुख शांति तथा उनकी कृपा मांगते हैं। यहां बालाजी के भोग लगाने पर जो पहले दो लड्डू निकाले थे, वह नहीं निकालते हैं। फिर वहां से सीधे घर को प्रस्थान कर देते हैं, रुकते नहीं।
भूत प्रेत ग्रस्त व्यक्ति यहां उपरोक्त अनुसार अर्जी लगाता है। यहां भूत प्रेतों को संकट कहते हैं। अर्जी में बालाजी, भैरों जी व प्रेत राज जी से यही कहते हैं कि मेरे ऊपर जो संकट है, उससे मुझे मुक्त करें। तो यहां की अदृश्य शक्तियां क्रियाशील हो जाती हैं और संकट को उस व्यक्ति पर लाकर संकट को विभिन्न तरीकों से कसती हैं, वह संकट को तीन प्रकार की गति देती हैं। एक तो संकट को फांसी दी जाती है। वह संकट भैंरों जी के यहां पीड़ित के शरीर में शीर्ष आसन की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को मुक्त करने का वचन देता है। यह भी बताता है कि यह संकट किस तांत्रिक ने उसे लगाया है या वह स्वयं ही उसके पीछे कब और कहां से लगा है। उस संकट ने उस व्यक्ति का क्या-क्या अहित किया है। फिर उस संकट को फांसी दे दी जाती है। अथवा उस संकट को भंगीवाड़े में जला दिया जाता है। यदि बालाजी समझते हैं कि वह अच्छी आत्मा है तो उसे शुद्ध कर अपने चरणों में बिठा लेते हैं कि वह भजन करे और शक्ति अर्जित करे। और लोगों का अन्य संकटों से उद्धार भी करे। उस व्यक्ति की रक्षार्थ उसे अपने दूत दे देते हैं, जो उसकी रक्षा करते रहते हैं। यह सारा काम यहां स्वचालित अदृश्य शक्तियों द्वारा होता है। किसी जीवित व्यक्ति या पुजारी का कोई योगदान नहीं होता है।
यदि संकट ग्रस्त व्यक्ति यह अर्जी लगाता है कि जो भी संकट उसे परेशान कर रहा है, या कर रहे हैं, बालाजी महाराज उसे कैद कर लें तो वह संकट बालाजी महाराज के यहां कैद हो जाता है और वह उन संकटों से मुक्त हो जाता है।
यहां संकट ग्रस्तों की विभिन्न यातनाओं जैसे कलामुंडी खाते, दौड़-दौड़कर दीवारों में पीठ मारते, धरती पर हाथ मारते, भारी-भारी पत्थर अपने ऊपर रखवाते, अग्नि में तपते इत्यादि देखकर दर्शनार्थी भयभीत हो जाते हैं। किंतु भय का कोई कारण नहीं है। संकटग्रस्त व्यक्ति किसी दर्शनार्थी को कोई हानि नहीं पहुंचाता है। बालाजी महाराज के अदृश्य गण दर्शनार्थी की रक्षा में तत्पर रहते हैं। जो दर्शनार्थी अपने किसी कार्य के लिए अर्जी लगाता है, तथा यह भी बालाजी से कहता है कि मेरा काम हो जाने पर सवा मनी करूंगा तो कार्य पूरा हो जाने पर वह सवा मनी लगाता है। सवा मनी करने के लिए मंदिर के पुजारी जो श्री राम जानकी मंदिर में बैठते हैं, उन्हें सवा मनी के पैसे जमा कराने होते हैं। यह दो प्रकार की होती है। एक, लड्डू पूड़ी, दूसरी हलुवा-पूड़ी। पुजारी उन्हें उस कीमत की रसीद दे देता है तथा बारह बजे मंदिर में प्रसाद लगाने के बाद आपको प्रसाद दिया जाता है। प्रसाद को अपने परिजनों व साथियों के लिए मंदिर से धर्मशाला में ले जाकर सेवन करना चाहिए। इस मंदिर में एक विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि मंदिर में लगाया गया भोग प्रसाद न कोई किसी को देता है और न ही कोई दूसरा खाता है। इस मंदिर में लगाया प्रसाद अपने घर भी नहीं ले जाया जाता। केवल मेवा मिश्री का भोग ही ले जा सकते हैं। यहां करीब तीन सौ धर्मशाला हैं और भोजन की अच्छी व्यवस्था है।

जल स्रोत एवं जल संग्रह कहां करें

जल सभी के जीवन के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। किसी भी भवन में जल स्रोत जैसे बोरिंग, हैंडपंप, कुआं आदि किस दिशा में बनाया जाए। जल संग्रह वाली टंकी कहां रखी जाए या बनायी जाए, इसका पहले ही निर्धारण करने से जीवन भर सुकून और सुख मिलता है। आपको बता दें कि भूमिगत जल स्रोत या नल लगाने के लिए सबसे अनुकूल भाग भूखड का ईशान कोण होता है। बोरिंग पूर्व दिशा में है तो सुख-समृद्धि, पश्चिम में भूमि-संपत्ति लाभ, उत्तर में शांत व सुखी जीवन, दक्षिण में दम्पत्य सुख की हानि, ईशान में धन समृद्धि में उत्तरोत्तर वृद्धि, वायव्य में विवाद व कष्टमय जीवन, आग्नेय में संतान कष्ट, नैऋत्य में अकाल मृत्यु भय तथा मध्य भाग में बोरिंग कराने पर धन हानि होती रहती है। पानी की टंकी वायव्य कोण में रखनी चाहिए। अतः बोरिंग कराने से पहले एक बार वास्तु विचार करना जीवन भर के लिए सुखकारक हो सकता है।

Friday, August 15, 2008

सैक्स से ज्यादा बिक रहा है ज्योतिष, क्यों...??

इन दिनों भारत ही नहीं, विश्व समुदाय ज्योतिष और आध्यात्म की ओर तेजी से बढ़ रहा है। कोई समाचार पत्र हो, कोई टीवी चैनल, ज्योतिष, धर्म और आध्यात्म की चर्चा हर ओर है। खगोलीय घटनाओं से लेकर भूकंप व मौसम जैसे मामलों में भी ज्योतिष का आकलन प्रमुखता से लिया जा रहा है। कम्प्यूटर ने इस मरते हुए साहित्य को जिंदा किया था तो इंटरनेट ने इसे संजीवनी प्रदान कर दी है। सैकड़ों सालों तक रिसर्च से दूर रहा यह सब्जेक्ट अब नयी पीढ़ी के लिए भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है। विभिन्न प्रख्यात समाचार एजेंसियों के सर्वे से यह भी तथ्य उभरा है कि सबसे अधिक ज्योतिष साहित्य, वास्तु, तंत्र-मंत्र, योग और अध्यात्म बिक रहा है। उसके बाद सैक्स और तीसरे नंबर पर अपराध साहित्य आता है। तो यहां यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर ऐसा क्या है ज्योतिष शास्त्र में।
यहां यह जानना जरूरी है कि पूरे जगत का जीवन समय से संचालित है। कितना महान है समय कि यह सबको समान हिस्से में मिला हुआ है, कितना विद्रूप है इसका कि किसी के पास समय नहीं और किसी के पास इतना समय है कि वह पूरा जीवन व्यर्थ कर देता है। शुभ भी है समय और अशुभ भी है। या यह कहें कि अपने समय को हम ही बनाते हैं। शुभ-अशुभ समय का अनुमान, सही समय में सही कार्य करने की बुद्धि एवं समय का संयमन हमें ज्योतिष से ही प्राप्त होता है। तो क्या समय से ही बना है जीवन। कहते हैं कि समय के स्वरूप का ज्ञान कर लेने के बाद अगर उसी के अनुरूप आचरण कर लो तो सफलता को स्वयं समय भी नहीं रोक सकता।
महाबली भीम में दस हजार हाथियों का बल था, किंतु समय की गति को समझते हुए उन्होंने राजा विराट के यहां रसोइए की नौकरी करके अशुभ समय को न केवल बुद्धिमता पूर्वक निकाल दिया, बल्कि उस अज्ञातवास में कीचक वध जैसी महान उपलब्धि भी हासिल की थी।
वेदांग ज्योतिष में ज्योतिष को काल विधायक शास्त्र बतलाया गया है। छह वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोच्च स्थान दिया गया है। यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कि ज्योतिष जिज्ञासुओं के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपनी जन्म राशि पर विश्वास करें कि नाम राशि पर। इस संबंध में ज्योतिष शास्त्र इस प्रकार निर्देश देता है....
विद्यारम्भे विवाहे च सर्व संस्कार कर्मेषु।
जन्म राशि प्रधानत्वं नाम राशि न चिंतयेत।।
इसका मतलब यह है कि एजूकेशन शुरू करने में, शादी में, यज्ञोपवीत आदि मूल संस्कारित कार्यों में जन्म राशि की प्रधानता होती है, नाम राशि का विचार नहीं करना चाहिए, किंतु..

गृहे ग्रामे, खले, क्षेत्रे, व्यापार कर्माणि।
नामराशि प्रधानत्वं जन्म राशि न चिंतयते।।

इसका अर्थ यह है कि यात्रा में, व्यापार आदि दैनिक कार्यों में नाम राशि प्रधान है न कि जन्म राशि। जहां तक इस मामले में मेरे 45 वर्षों से अधिक के अध्ययन का व्यावहारिक अनुभव है, उसके अनुसार जिस नाम के लेने से सोया हुआ आदमी नींद से जाग जाए, जिस नाम से उसके रोजमर्रा के कार्यों का गहरा संबंध हो, वही अक्षर प्रधान राशि उस आदमी के भूत, भविष्य व वर्तमान को निर्धारित करती है। पश्चिम के प्रकांड विद्वान एलिन लियो का भी यही विश्वास था, जो मेरे अनुभव से साबित हो रहा है।
ज्योतिष में कई अन्य स्तंभ हैं जैसे अंग स्फुरण, अंग संचालन, हस्त सामुद्रिक शास्त्र, मस्तक रेखा, पाद रेखा आदि भी महत्वपूर्ण जानकारी दे देते हैं। श्री रामचरित मानस के अनुसार-
आगे परा जटायू देखा,
सुमिरत राम चस की रेखा।

इससे भी साबित होता है कि गिद्ध राज पाद रेखा विद्य़ा के विद्वान ज्ञाता थे। समय का सम्यक ज्ञान ही ज्योतिष है। श्रीराम चरित मानस में कई जगह समय की महिमा बतायी गयी है।
समय जानि गुरु आयसु पाई
संध्या करन चले दोउ भाई।।
विश्वामित्र समय शुभ जानी
बोले अति सनेह मय वानी।।
उठहु राम भंजहु भव चाप
मेटहु तात जनक परिताप।।
आदि आदि..
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ज्योतिष एक संपूर्ण वैज्ञानिक शास्त्र है। इसमें दो और दो चार ही होते हैं। आवश्यकता है गंभीर एवं व्यावहारिक अद्यययन, धैर्य, अथक पिरश्रम, शास्त्रीय किताबों का अच्छा संग्रह, मनन, सामुदिक्र लक्षणों का अध्ययन और स्वयं भविष्यवक्ता का संस्कारित और संयमित जीवन, तभी इस विषय में आगे बढ़ा जा सकता है। जहां तक तंत्र शास्त्र का सवाल है, यह महान समुद्र है। इसमें जितने गहरे गोते लगाए जाएंगे, उतने उत्कृष्ट मोती प्राप्त होंगे।

हरेंद्र पाल सिंह
सेवानिवृत्त पीसीएस, उत्तर प्रदेश सरकार

Tuesday, August 12, 2008

हमारे साथ मनाइए लाड़ले कन्हैया की जन्माष्टमी

भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव आ रहा है घर-घर में होती है पूजा, किंतु इस साल आप जन्मोत्सव करिए हमारे साथ...विधि-विधान से...हम बताएंगे 20 अगस्त को कि किन मंत्रोच्चार के साथ किस विधि से करें अपने लाड़ले कन्हैया का जन्म..कि उसकी कृपा बरसती रहे बरस भर आपके जीवन आंगन में...

डरो नहीं यह चंद्र ग्रहण है

ग्रहण को लेकर इन दिनों मीडिया ने जनमानस में एक प्रकार से भय पैदा कर रखा है। तमाम न्यूज चैनल पर खबरों से ज्यादा ज्योतिष और धर्म बिक रहा है। एक अगस्त को सूर्य ग्रहण था तो अब 16-17 की रात्रि में चंद्र ग्रहण का योग पड़ रहा है। यह ठीक है कि शास्त्रों में ग्रहण के फल वर्णित हैं और हर राशि पर इसका विशेष असर पड़ता है, किंतु भयभीत कर देना कदापि ठीक नहीं कहा जा सकता। ऐसा विगत सालों में कई बार हुआ है, जब एक साल में अथवा एक पखवाड़े में दो-दो ग्रहण का योग पड़ा है।
यह एक प्राकृतिक घटना है। एक साल में इनकी संख्या औसत से ज्यादा होने पर ही अनिष्ट की आशंका करनी चाहिए। एक साल में अधिकतम दो चंद्र ग्रहण हो सकते हैं। हिंदी महीने में यानि अमावस्या से अमावस्या तक पहले चंद्र ग्रहण और फिर सूर्य ग्रहण पड़े तो अनहोनी की आशंका समझनी चाहिए, जबकि वर्तमान अगस्त माह में पहले सूर्य ग्रहण और अब चंद्र ग्रहण पड़ रहा है। यह न तो किसी देश के लिए खराब है और न ही किसी राज्य के लिए।

सामूहिक प्रभाव
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फिर भी सूर्य ग्रहण कर्क राशि में और चंद्र ग्रहण कुंभ राशि में पड़ने से खाद्य पदार्थ में मंहगाई, उपद्रव, आगजनी, विस्फोट,
बुजुर्ग,चिकित्सक एवं सरकारी कर्मियों को परेशानी हो सकती हैं।

मेरा क्या होगा पंडित जी---------------
चंद्र ग्रहण मेष में शुभ,वृष, कन्या व वृशि्चक में मध्यम, मिथुन व तुला में अशुभ, कर्क व सिंह में दाम्पत्य कष्ट तथा धनु व मीन में दोनों प्रकार के फल और मकर व कुंभ राशि वालों को बड़े दुख देने वाला है।

क्या मुझे नहीं देखना है-----------------
हां। गभर्वती स्त्रियों, मानसिक परिश्रम करने वालों, रोगियों, रोडियो, क्रीमो थैरेपी कराने वाले मरीजों आदि को ग्रहण देखने से परहेज करना है।

तो मैं क्या करूं
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शुभ व मध्य प्रभाव वाली राशियों के जातक अपने इष्ट देवी-देवता के मंत्र जाप व हवन करें। यथा शिक्त दान दें। अशुभ प्रबाव वाले जातक अपने पंडित-पुरोहित व आचार्यों से मार्गदर्शन लेकर विशेष जाप व हवन करें। ग्रहों की प्रतिनिधि जड़ी-बूटियों से हवन करें। विशेष दान दें और चाहें फैमिली पंडित डॉट कॉम अथवा फैमिली पंडित डॉट ब्लागसपाट डॉट कॉम पर सवाल भेजें। जवाब फ्री मिलेगा।

एफपीसी टीम

Saturday, August 2, 2008

यातायात दुर्घटना कराएगा सूर्य ग्रहण

Jul 30, 11:28 pm(Dainik Jagran)

मथुरा। भारत की कुंडली में तृतीय स्थान तथा कर्क राशि में पड़ने वाला सूर्य ग्रहण यातायात दुर्घटनाओं को जन्म देगा। संभव है सार्वजनिक वाहनों पर आतंकी हमले भी हो जाएं। इससे जन सामान्य की हानि होगी। दो घंटे लंबे ग्रहण में पुण्य कमाने की सलाह दी गयी है।

फैमिली पंडित डाट कॉम के पैनलिस्ट तथा नगर के प्रख्यात ज्योतिषी इस समेत एक पखवाड़े में दो ग्रहण के दुष्प्रभावों पर एकमत हैं। उनका कहना है कि सूर्य ग्रहण जहां सत्ता में बैठे लोगों के लिए ठीक नहीं है, वहीं प्राकृतिक असंतुलन और यातायात दुर्घटना को जन्म देने वाला है। अमावस्या शुक्रवार को सायं चार बजकर छह मिनट से पांच बजकर 58 मिनट तक चलने वाले इस ग्रहण का सूतक शुक्रवार को सुबह 4.06 बजे से लगेगा। बालक, वृद्धि व रोगी दोपहर एक बजे तक भोजन आदि कर सकेंगे। ग्रह शक्ति पत्रिका के संपादक प्रदीप सक्सेना कहते हैं कि इस समय आतंकी घटनाओं को लेकर जो भय का माहौल बना हुआ है, उसकी ग्रहण बाद पुनरावृत्ति हो सकती है। ज्योतिषी हरेंद्र पाल सिंह के मुताबिक यह ग्रहण राष्ट्रीय अनिष्टकारी घटनाओं को जन्म देगा। ओमप्रकाश गौतम के मुताबिक यह ग्रहण कर्क राशि वालों को विशेष कष्टकारी होगा। मथुरस्थ सर्व कर्म पांडित्य समिति के अध्यक्ष अशोक पाठक तथा दीपक भागवत ज्योतिष संस्थान के आचार्य कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी के मुताबिक मिथुन, वृश्चिक, धनु व मकर राशि वालों को अशुभ तथा सिंह, मीन, मेष राशियों पर मध्यम असर डालेगा। कन्या, कुम्भ, तुला तथा वृष राशि वालों को शुभ फल मिलेगा। युवा ज्योतिषी आदित्य कृष्ण व लखन परिहार के मुताबिक एक माह में दो ग्रहण अशुभ हैं। प्राकृतिक आपदा से जनता दु:खी रहेगी। ग्रहणों का असर उथल-पुथल मचाने वाला होगा।

श्रीजी पीठाचार्य मनीष शंकर शास्त्री व अजय तैलंग ने लोगों से सूर्य ग्रहण के समय सूर्य उपासना तथा गायत्री जप करने की सलाह दी है। काले तिल, उड़द, लाल मसूर, चावल व वस्त्रों का दान शुभ फलदायी रहेगा।

अब जो जन्मेंगे, होंगे काल सर्प से पीड़ित

Aug 01, 11:48 pm (Dainik Jagran)

मथुरा। अगले पांच महीने तक जो भी बालक जन्म लेंगे, उन्हें काल सर्प योग का दंश झेलना पड़ेगा। पूर्व जन्म के कर्म फलों के अनुसार पड़ने वाले इस योग के प्रति जागरुकता बढ़ने के बावजूद डिलीवरी मामलों में ज्योतिषीय सलाह मुताबिक भी इससे नहीं बचा जा सकेगा। ज्योतिष के आधार पर डिलीवरी कराने की प्रथा चल निकली है, मगर 23 जुलाई से गोचर में बने काल सर्प योग से बचना असंभव ही है। लिहाजा डिलीवरी मामलों में ज्योतिषी भी अब अन्य योगों का सहारा लेकर यजमानों की मंशा पूरी करने में लगे हैं। पिछले जन्मों में दूसरों के धन हड़पने, सर्प दोष तथा पितृ दोष से बनने वाला यह योग अगले दिसंबर माह के अंत तक चलेगा। जाहिर है इस अवधि में पैदा होने वाले बालक काल सर्प दोष से पीड़ित होंगे।

जीवन में भारी संघर्ष और उतार-चढ़ाव के बाद सफलता देने वाले इस योग की शांति का भी यह समय चल रहा है। नाग पंचमी पर मथुरा-वृंदावन में कई जातकों ने इसकी शांति करायी और कइयों ने जिंदा सांप जंगल में छुड़वाए और अगस्त माह की अमावस्या को भी वृंदावन में इसकी शांति के अनुष्ठान हो रहे हैं, लेकिन अब जो बालक जन्म लेंगे, उनके काल सर्प योग होना निश्चित है। ज्योतिषियों के मुताबिक इस समय कर्क राशि में केतु के साथ-साथ सूर्य, शुक्र, बुध, सिंह में शनि व मंगल, धनु में गुरु, मकर में राहू गति कर रहा है। आने वाले महीनों में भी कुछ ग्रह जो स्थान परिवर्तन करेंगे, लेकिन राहू-केतु से बाहर नहीं जा पाएंगे। ज्योतिर्विद आचार्य एलडी शर्मा व हरेंद्र पाल सिंह के मुताबिक वासुकी, कर्कोटक, महापद्म, तक्षक, शंखपाल, शेष नाग, पद्म, कुलिक, शंखनाद, अनंत, पातक व विषाक्त समेत 12 प्रकार के काल सर्प योग बनते हैं, जिनसे कुल 288 प्रकार से काल सर्प योग बन जाता है। हालांकि ज्योतिष शास्त्र में इसका कहीं-कहीं उल्लेख है, लेकिन दक्षिण भारत में इसकी पहचान काफी पहले कर ली गयी थी। इसके दुष्प्रभाव का अध्ययन करने के बाद उत्तर भारत में भी इसके बारे में जागरुकता बढ़ी है। उनके अनुसार इससे पीड़ित जातकों की अपनी जिंदगी नहीं होती। वे हमेशा दूसरों के लिए जीते हैं और भारी उतार-चढ़ाव व संघर्ष का जीवन भोगते हैं। आचार्य आदित्य कृष्ण के अनुसार पितृ शांति के लिए श्रीमद् भागवत तथा काल सर्प दोष की शांति न कराने पर यह योग पीढि़यों में ट्रांसफर होता रहता है। इसकी शांति के पश्चात कुंडली अपने नैसर्गिक प्रभाव को देने लगती है।

Wednesday, July 23, 2008

हम क्यों बनना चाहते हैं फॅमिली पंडित?

कई बार कई सवाल अपने जवाब से ज्यादा महत्वपूण होते हैं। कई बार कई जवाब अपने जवाब से ज्यादा घातक हो जाते हैं। कई बार मौन इतना प्रभावशाली हो जाता है कि आवाज को भी निगल जाता है और कई बार आवाज इतनी क्षीण पड़ जाती है कि समय की पदचाप भी नहीं सुन पाती।
समय का सदुपयोग करने के कई टिप्स किताबों में हैं, पर वे निरथर्क SAABIT हो रहे हैं। जितना सहज और सरल जीवन पचास साल पहले तक भी था, उतना अब माडर्न टाइम सेविंग टेक्नोलाजी यूज करने के बाद भी नहीं बन पा रहा। मानिसक प्रेशर और स्ट्रेस बढ़ता ही जा रहा है। असफल लोगों की जमात लगातार लंबी हो रही है। स्कूल की पढ़ाई से लेकर CAREER काउंसिलंग तक और चारों ओर इतना भ्रम फैला है कि इंसान को करना क्या है, उसे सूझ NAHIN रहा। हर रास्ते पर एक बैनर है और बैनर इतना आकषर्क है कि उसकी चमक तभी DHOOMIL होती है जब हम कुछ खो चुके होते हैं अथवा पा लेने का SANGHARSH लंबा खिंचता जाता है।
जितना एक आदमी के पास समय है, उतना ही पूरी दुनिया के पास है। समय को पढ़ने का विज्ञान हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले विकसित कर दिया था। लेकिन सतत प्रक्रिया में न हो पाने वाले शोध की वजह से आज ज्योतिष एक इंडीकेटिव साइंस से ज्यादा नहीं माना जाता। फैमिली पंडित.कॉम ने पुरखो के इस अमूल्य उपहार का लाभ जन-जन में बांटने का वीणा उठाया है। ताकि हर किसी को अपने जीवन का ARTH मिल सके। ऐसी ही सेवाभावी भावनाओं के साथ तीन हजार लायल सदस्यों के साथ 6 जून 2008 को फैमिली पंडित.कॉम लांच की गयी है। गजब ये कि अपने अनूठे कंसेप्ट के कारण ही इस साइट ने गति पकड़ ली है और पचास दिन में ही सात हजार से ज्यादा जरूरत मंद इस पर विजिट कर चुके हैं। जन्म डाटा भेजने वालों की लाइन लगी हुई है। यह आंकड़ा भी चार हजार को पार कर गया है। इसकी वजह है,वेबसाइट के 21 एस्ट्रोलोजर द्वारा हर जन्म डाटा पर गहन मनन के बाद दी गयी फोरकास्ट और सटीक व ताकिर्क जवाब देने का तरीका। न केवल फ्री में कंसलटेंसी, बल्कि मथुरा-वृंदावन के सुविज्ञ शास्त्रियों की पूरी जमात सटीक और कारगर उपाय बताती है, जो जीवन के प्रतेयक सेक्टर में लाभकारी सिद्ध होते हैं। सब जानते है कि मथुरा-वृंदावन की स्थली कितनी पवित्र हैं। यहां के मनीषी, ज्योतिषी और कमर्कांड कराने वाले अपने निजी स्तर पर बाहर से आने वाले लोगों का भला कर ही रहे थे,फैिमली पंडित.कॉम ने उनका पैनल बनाकर लाइफ प्लान बनाने की व्यवस्था की है। फैिमली पंिडत.कॉम ने आल इंडिया एस्ट्रोलोजिकल RESEARCH एंड वैलफेयर सोसायटी से भी एलाइंस किया है, ताकि जन-जन को मिलने वाले लाभ का प्रतिशत बढ़ सके। फैिमली पंडित.कॉम ने एक साल में एक लाख जन्म डाटा एकत्र करने का लक्ष्य रखा है,ताकि उनके जीवन के तमाम SECTER पर शुरू की जाने वाली RESEARCH का लाभ तमाम लोग अनुभव कर सकें और भारत जल्द से जल्द रोग मुक्त, ऋण मुक्त और गरीबी मुक्त हो सके। हमारा सपना है स्वस्थ, सम्पन्न और विकासशील समाज और मजबूत राष्ट्र। आपका साथ और सहयोग मिला तो एफपीसी का यह सपना पुरखों की विद्या से दुनिया को एक दिन जरूर चमत्कृत करेगा।

Tuesday, July 22, 2008

काल सर्प दोष निवारण महायज्ञ

एस्ट्रोलोजिकल रिसर्च एंड वेलफेयर सोसाइटी एवं फॅमिली पंडित.कॉम द्वारा वृन्दावन धाम में काल सर्प दोष निवारण महायज्ञ का आयोजन कराया जा रहा है। यह हमारा पंचम काल सर्प दोष निवारण महायज्ञ है। फॅमिली पंडित.कॉम के लौन्चिंग इयर में प्रोमोशनल दक्षिणा में। इस सामूहिक महायज्ञ में माँ यमुना जी के तट पर ४० जिजमान बैठेंगे। महायज्ञ होगा ३० अगस्त २००८ को सुबह ८ बजे से... जो जातक काल सर्प दोष से पीड़ित हैं और अपने जीवन में प्रगति नहीं कर पा रहे हैं, देव पित्र अमावस्या पर वृन्दावन के सुविज्ञ शास्त्रिओं द्वारा कराये जा रहे अदभुत महायज्ञ में योगदान करके ग्रहों की वाधाएं दूर कर सकते हैं॥ अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें...आचार्य आदित्य कृष्ण महाराज मोबाइल नम्बर-९१९७१९१७०७०७..

इंतजार किस बात का, हाजिर है जवाब

बहुत भीड़ हो गई है भइया फॅमिली पंडित.कॉम पर... रोजाना आ जाते हैं ५०-६० मेल और हमारे सभी पंडित जी कहत हैं कि लोगों को जवाब हाथों-हाथ दिया करो। क्या करे, जवाब पहुँच रहे हैं २४ से ४८ और कभी-कभी तो ७२ घंटे में। और पूछने वाले हैं कि साँस नहीं लेने दे रहे। कई भाई लोगों ने तो यहाँ तक लिख भेजा है कि पंडित जी महाराज पैसा ले लो, पर इंतजार मत कराओ। बहुत भाई लोग तो अपना ई-मेल ही हड़बड़ी में ग़लत भेज देते हैं तो कई अपना ई-मेल बॉक्स में अपना जवाब खोज ही नहीं पाते और हमें मेल करने में लगे रहते हैं..... सो फॅमिली पंडित जी महाराज ने सुन ली है आपकी बात ..... अब आपको जवाब के लिए मेल का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। आपका मेल मिलते ही आपको पंडित जी महाराज की ओर से भेजा जाएगा एक कोड नम्बर और आपके सवालों के जवाब आपको जारी किए गए कोड के साथ १० से १२ घंटे के अन्दर रिलीज़ किए जायेंगे इसी फॅमिली पंडित ब्लॉग स्पॉट पर। हैं न आसान .... कोड के साथ गोपनीयता भी और आसानी भी...तो देर किस बात की... शुरू हो रही है यह सेवा २६ जुलाई शनिवार से... बस शर्त एक है..... जनम डाटा हमें जल्दी-जल्दी और ज्यादा से ज्यादा भेजो, जो जितने ज्यादा जनम डाटा जितनी जल्दी भेजेगा, वह इनाम का उतना ज्यादा हक़दार हो जायगा। मालूम है इनाम क्या रखा है फॅमिली पंडित.कॉम वालों ने... ॥ पूरे एक साल की सदस्यता मुफ्त और साथ में तीन लकी उपहार भी और हाँ ...कोई छिपी शर्त भी नहीं है प्यारे...

फॅमिली पंडित.कॉम को साधुवाद

आदरणीय पंडित जी ये साईट बनाकर बहुत ही सुंदर और जनहित का जो कार्य आप सभी महानुभावों द्वारा किया गया है, उसके लिए बहुत-बहुत प्रणाम और साधुवाद। निशुल्क सेवा करना आज के जमाने में बहुत ही बड़ी बात है। हजारों लोगों की दुआएँ आपको लगेंगी और अब हर आदमी एक ही फॉरम पर अपनी समस्याएँ समाधान के साथ सुलझा सकता है। आप से कहता हूँ कि एकदिन आपकी साईट याहू से भी ज्यादा पापुलर होगी और देश के हर आदमी की जरूरत बन जायेगी। अंत में एकदम सही भविष्यवाणी के लिए धन्यवाद, मदन चतुर्वेदी-दुबई। 22 july 2008

ट्रीटमेंट एंड हीलिंग

हर्बल बाथिंग पाउडर
लकी जेम्स
यज्ञ, जाप, अनुष्ठान
यन्त्र, मंत्र, तंत्र
म्यूजिक थेरेपी

Monday, July 21, 2008

फ्री फोरकास्ट
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करियर एंड फिनेंस
लव एंड मैरिज
स्वास्थय ज्योतिष्य
स्टॉक मार्केट
नुमेरोलोजी
वास्तु एवं फंग्सुई
लाल किताब
एंड ओल सेक्टर आफ लाइफ

यूपीए सरकार प्राणवायु को तरसती रहेगी


दैनिक जागरण के मथुरा संस्करण में फॅमिली पंडित डोट कॉम के पंडितों की २१ जुलाई को प्रकाशित भबिश्यवाणी
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मथुरा, कार्यालय प्रतिनिधि- ज्योतिषियों की नजर में २२ जुलाई को यूपीए सरकार के बचने के योग ज्यादा हैं, लेकिन विश्वासमत हासिल करने के बाद भी सरकार प्राणवायु को तरसती रहेगी। फॅमिली पंडित डोट कॉम के पंडितों ने गोविन्द नगर में २० जुलाई को हुई मीटिंग में इस मामले समेत कई मुद्दों पर मंथन किया। बताया गया कि प्रधानमंत्री की कुंडली में गोचर में केतु, गुरु के साथ मंगल का त्रिकोणात्मक योग बन रहा है, जो शुभ है। लेकिन बुध की स्थिति केंद्रीय होने से सरकार को निश्प्रभाबी बना रहा है। यही कारण है कि शुरू में मजबूत दिख रहा यूपीए तीन दिन पहले दुविधा में आ गया है। सेवानिवृत pi si एस हरेन्द्र पाल सिंघ ने कहा कि उनहोंने एक माह पहले ही प्राकृतिक आपदाओं के बाबत कह दिया था। अब अगले ११ माह सात दिन बाद शनि के साथ राहू का शाठास्थक योग बनेगा जो विशेष किस्म के भीषण प्राकृतिक प्रकोप का संकेत करता है। आचार्य एलडी शर्मा ने बताया कि उनहोंने इस साल के हिन्दी pustakalya काल दर्शक पंचांग में भविषवाणी कि थी कि परमाणु करार होगा, वाम दल समर्थन वापस ले सकते हैं और सरकार को विशवास मत हासिल करना पड़ेगा, लेकिन मध्य अवधि चुनाव से राहत मिलेगी । ज्योतिष दीपक भगवत संसथान के आचार्य कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि १९ जुलाई से १६ अगस्त तक चलने वाले चंद्र shraavan मॉस में कई कु योग बन रहे हैं। पाँच शनिवार का पड़ना शुभ नही है। चार एवं पाँच ग्रहों की युति, १२ अगस्त को बुध ग्रह का पश्चिम में उदय होना और एक अगस्त व १६ अगस्त को एक पक्ष में दो ग्रहण पड़ना भी शुभ नही है। राजनीती में बिखराव, सत्ता पर संकट के बादल, यान दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा आदि से जन हानि के संकेत हैं। कोई भू भाग रक्त रंजित भी हो सकता है। मीटिंग में सामूहिक रुद्र अभिषेक व हवन कराने की सलाह जनता को दी गई। मीटिंग में ज्योतिष आचार्य आर एन चतुर्वेदी, विष्णु जी महाराज, घनश्याम चतुर्वेदी, लखन परिहार, आचार्य आदित्य कृष्ण, प्रदीप सक्सेना, माधव, पंकज चतुर्वेदी, वासुदेव, शरद, सौरभ शास्त्री और गोविन्द आदि मौजूद रहे। मीटिंग का सञ्चालन डायरेक्टर प्रमोशन आचार्य आदित्य कृष्ण और संयोजन एम् डी सार्थक चतुर्वेदी ने किया।

मैं हूँ ना

मैं हूँ न
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आप परेशान हैं.बीमारियों अथवा अन्धविश्वास और हवाओं को महसूस कर रहे हैं, अपनी जन्म तिथि, समय नहीं मालूम, कोई बात नही। आपकी समस्या हो सकती है फुर्र। बस, अपनी समस्या के साथ अपना नाम, पता, मोबाइल या बेसिक फ़ोन नम्बर फॅमिली पंडित.कॉम पर सेंड करिए और समाधान के लिए दिल थाम कर करिए हमारे पंडित जी के फ़ोन की pratiksha
एक प्रश्न
२१ पंडित
एक प्रतिज्ञा
पीडा की पराजय
और प्रभावशाली भारत