Monday, October 27, 2008

शुभ मुहूर्त पूजन के लिए

दीपावली का पूजन वर्ष भर की सुख समृद्धि का स्थायी कारक बन सकता है। फैमिली पंडित डॉट कॉम के आचार्य-शास्त्रियों ने सभी के लिए शुभ मुहूर्त निकाले हैं, जिनमें पूजन करने से न केवल आनंददायक अनूभति होगी, बल्कि घर-परिवार में सौभाग्य और समृद्धि की वृद्धि होगी। इन मुहूर्त में मन और विधि-विधान से मां लक्ष्मी का पूजन किया जाए तो घर में लक्ष्मी का स्थायी वास रहेगा।
दुकान, फैक्टरी, प्रतिष्ठान आदि के लिए दिन में मुहूर्त हैं तो घऱ की पूजा के लिए सायंकाल और रात्रि के मुहूर्त हैं। मंगलवार दीपावली के दिन चित्रा और स्वाति नक्षत्र का सुखद संयोग बना है। गणेश-लक्ष्मी के पूजन का क्रम पूरे दिन अलग-अलग समय में और मध्य रात्रि तक जारी रहेगा। आचार्यों का कहना है कि लग्नेश के स्वग्रही होने से भी विशेष लाभ का योग बन रहा है।
पंडित पवन दत्त शर्मा के अनुसार मंगलवार को प्रातः 10.19 से 12.23 तक धनु लग्न तथा 10.42 से 12.42 दोपहर तक लाभ का चौघड़िया है। दोपहर 12.14 से 12.23 तक अमृत का चौघड़िया रहेगा। इन अवधि में कारखानों, दुकानों और मशीन आदि के कायर्स्थल पर लक्ष्मी-गणेश का पूजन सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
प्रदोष काल में आर्थिक प्रगति के लिए एक और श्रेष्ठ मुहूर्त वृष लग्न का है, जो सायंकाल में 6.26 बजे से रात्रि 8.23 बजे तक रहेगी। इसके बीच में लाभ का चौघड़िया सायं 7.02 से रात 8.38 बजे तक रहेगी, जो विशेष फल देने वाली है। रात में 8.29 से 10.42 तक मिथन लग्न और रात्रि में 10.42 से 1.02 बजे तक कर्क लग्न रहेगी। कर्क लग्न में पूजन करना अत्यंत लाभकारी रहेगा। निशीथ काल का पूजन सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसके बाद सिंह लग्न सुबह के 4.35 बजे तक है, जिसमें पूजन और हवन का विशेष महत्व बताया गया है। मकर लग्न दोपहर 12.12 बजे से 2.05 तक है, इसमें पूजन से बचना चाहिए। कुछ विद्वानों के मुताबिक रात में कर्क लग्न के मुहूर्त में केतु की अशुभ दृष्टि रहेगी, लिहाजा उन्होंने इसमें पूजन न करने की सलाह दी है। सभी पूजन काल का समय दिल्ली के समयानुसार लिया गया है। सभी जन अपने स्थानीय समयानुसार पूजन मुहूर्त आचार्यों से निकालवा लें।

कैसे करें पूजन
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पूजन की प्रक्रिया शुरू करते ही सबसे पहले आसन शुद्धि और स्वस्ति पाठ करें और जल अक्षत लेकर पूजन का संकल्प लें। गणेश प्रतिमा का स्थापन कर षोड़षोपचार पूजन करें, फिर नवग्रह पूजन, षोड़शमातृका पूजन करें। तत्पश्चात कलश और महालक्ष्मी पूजन करें। संभव हो और स्फटिक के श्री यंत्र हों तो इनका दूध, दही आदि (पंचामृतस्नान) से अभिषेक करें। शुद्ध जल से स्नान के बाद उन्हें वस्त्र धारण कराएं। आभूषण पहनाएं। प्रसाद लगाएं। वस्त्र नहीं हैं तो कलावा अर्पित करें। केसर, चंदन, सिंदूर, सुगंधित तेल, अक्षत आदि चढ़ाएं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंकुम व पुष्प से मां के एक-एक अंग की पूजा करें। अष्ट सिद्धि, अष्ठ लक्ष्मी पूजन करें और
ऋतु फल समर्पित करें। तांबूल पूगी फल चढ़ाएं। और श्रद्धापूर्वक दक्षिणा चढ़ाएं। नमस्कार करने के बाद देहली विनायक पूजन, कलम-दावात पूजन, कुबेर पूजन, दीपक पूजन करें और आरती करें। अंत में क्षमा प्रार्थना भी करें।

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