Sunday, September 28, 2008

ज्योतिष शास्त्र नक्षत्र, योग, ग्रह तथा राशि आदि के तत्वों के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव व गुणों का निश्चय कर यह बतलाता है कि अमुक नक्षत्र, ग्रह और राशि के प्रभाव से उत्पन्न पुरुष का अमुक नक्षत्र, ग्रह और राशि से उत्पन्न नारी के साथ संबंध करना अनुकूल रहेगा या नहीं। ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। आचार्यों ने जन्म के समय चंद्रमा की स्थिति के आधार पर ही जन्म राशि तथा जन्म नक्षत्र के द्वारा मेलापक पद्वति का ज्ञान करना बताया है।
मेलापक पद्वति में जिन आठ बातों पर कुंडली मिलान की प्रक्रिया अपनायी जाती है, उनमें से एक से लेकर आठ तक का योग 36 बनता है। तथा निम्न क्रमानुसार उनके गुणों की संख्या निर्धारित है, जैसेः
वर्णः एक गुण
वश्यः दो गुण
ताराः तीन गुण
योनिः चार गुण
ग्रह मैत्रीः पांच गुण
गण मैत्रीः छह गुण
भकूटः सात गुण
नाड़ीः आठ गुण
इस तरह कुल योग 36 हुआ। गुणों की संख्या के आधार पर मिलान करने का नियम निर्धारित है। जितने अधिक गुण मिलते हैं, उसको उतना ही अच्छा माना गया है।
यहां अलग-अलग विधि का ज्ञान आपको कराने का प्यास किया जा रहा है, ताकि जन साधारण भी इस वैज्ञानिक पद्वति को समझ कर इसका लाभ पूरी तरह से उठा सके। साथ ही यहां यह भी बताया जाएगा कि आठ बिंदुओं में से प्रत्येक बिंदू अलग-अलग किन गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। सबसे पहले लेते हैं वर्ण को...
वर्णः-ऋषियों ने बारह राशियों को चार प्रकार के वर्ण में विभाजित कर उनके बारे में बताया है। ये चार विभाजन ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के रूप में बताये गये हैं। इसी तरह हरेक वर्ण से संबंधित राशियां भी निर्धारित हैं। ब्राह्मण गुण वाली राशियां कर्क, वृश्चिक तथा मीन हैं। क्षत्रिय वर्ण वाली राशियां मेष, सिंह तथा धनु हैं। वैश्य वर्ण वाली राशियां वृष, कन्या तथा मकर हैं और क्षूद्र वर्ण वाली राशियां मिथुन, तुला व कुंभ हैं। उक्त राशियो से संबंधित जातक संबंधित वर्ण के गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
ब्राह्मण वर्ण वाली राशियां ज्ञान, शिक्षा, खोज आदि के कार्यो में प्रवीणता लिए हुए होती हैं। क्षत्रिय वर्ण वाली राशियां सामाजिक रक्षा, सेना, पुलिस आदि सशस्त्र वलों के कार्यों की संचालन योग्यता रखने वाली होती हैं। वैश्य वर्ण सामाजिक आश्यकताओं की पूर्ति और उत्पत्ति आदि के विषय में योग्यता रखती है। शूद्र वर्ण वाली राशियां परिश्रम आदि के विषय में प्रवीणता रखती हैं।
कुंडली मिलान में उपरोक्त वर्णित विशेषताओं के प्रतिनिधित्व के गुणों द्वारा इस बात पर जोर दिया गया है कि कन्या का वर्ण वर के वर्ण से श्रेष्ठ नहीं होना चाहिए, जैसे कन्या वर्ण शूद्र है तो वर के किसी भी वर्ण से (36 गुणों में) एक गुण प्राप्त होगा। कन्या का वैश्य वर्ण होने पर वर के अन्य वर्णों से भी एक गुण प्राप्त होगा, परंतु यदि वर्ण शद्र वर्ण से संबंधित है तो शून्य गुण ही प्राप्त हो पाएगा।
कन्या का क्षत्रिय वर्ण होने पर वर केवल ब्राह्मण या क्षत्रिय वर्ण का ही होना चाहिए, तभी एक गुण प्राप्त होगा। अन्य वर्णों वैश्य या शूद्र वर्ण के वर से शून्य गुण ही प्राप्त हो पाएगा। इसी तरह यदि कन्या ब्राह्मण वर्ण की है तो वर का वर्ण भी ब्राह्मण होना चाहिए, तभी एक गुण प्राप्त होगा। अन्य तीनों वर्णों के वर से शून्य गुण ही प्राप्त हो पाएगा।
वश्यः-यह दूसरा बिंदू है, जिससे कुछ राशियों का संबंध चतुष्पादों से कुछ का द्विपाद से तथा अन्य राशियों का कीट, सर्प एवं जलचर से संबध बताया गया है। दोनों वर-वधु की कुंडली के मिलान का तात्पर्य वश्य के पूरी तरह मिलने से दो गुण (36 गुण में से) तथा कुछ समानता पाए जाने पर एक गुण और असमानता पाए जाने पर शून्य गुण प्राप्त होते हैं। इन्हीं गुणों का योग आगे जाकर कुंडली मिलान में कुल जितने गुण मिलते हैं, के योग में समाहित करते हैं।
शेष छह बिंदुओं के बारे में अगले लेख में बताया जाएगा।
आचार्य एल.डी.शर्मा
(लेखक मथुरा में ज्योतिष समाधान केंद्र के संचालक और familypandit.com सीनियर पैनलिस्ट हैं।)

Saturday, September 27, 2008

शादी से पहले कैसे मिलाएं गुण

(आज से हम गुण मेलापक कुंडली पर ज्योतिष सिद्धांत के जरिये जातकों को मेलापक विषय पर विस्तार से जानकारी उपलब्ध करा रहे है। उत्सुक गण इस विषय की गहराई में जाकर इसका लाभ उठ सकते हैं। प्रस्तुत है इसकी भूमिका..)
लव मैरिज करने वाले भी जन्म कुंडली मिलाने पर जोर दे रहे हैं, यह न केवल उनके लिए शुभ बात है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी शुभ सोच है। इन दिनों फैमिली पंडित डॉट कॉम पर प्रेमी युगल कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहे हैं। उनके द्वारा गुण मेलापक के बारे में जानने के लिए सैकड़ों की संख्या में मेल की गयी हैं।
अतः लोगों को यह बताना जरूरी हो गया है कि किस तरह गुण मेलापक चार्ट में नाड़ी दोष होने के बावजूद किस प्रकार उक्त दोष उन कुंडलियों पर लागू नहीं होता।
नाड़ी दोष का दुष्प्रभाव वर एव कन्या की प्रजनन शक्ति, स्वास्थ्य तथा आय़ु पर सीधा-सीधा पड़ता है। वर-वधु के समान जीन्स होने पर संतति पर स्पष्ट रूप से दुष्प्रभाव परिलक्षित माना जाता है। सामान्यतः गुणमेलापक चार्ट में विद्यमान नाड़ी दोष किन स्थितियों में अपना दुषप्रभाव नहीं छोड़ता, उन्हीं स्थितियों के बारे में ही यहां बताया जा रहा है।
योनि, गण एवं भकूट दोष का संतुलन ग्रह मैत्री होने से बना रहता है। चंद्र राशि के अधिपति (वर-वधु) जिस नवांश में हों, उन नवांश के अधिपति यदि आपस में मित्र हैं तो नाड़ी दोष शांत हो जाता है।
समान नक्षत्र होने से मेलापक चार्ट में नाड़ी दोष अंकित रहता है, परंतु ऐसा होने पर विभिन्न नक्षत्र चरणों में होने से तथा पद बाधा नहीं होने से नाड़ी दोष नहीं लगता। पद एक-तीन, दो-चार होने चाहिए। राशि एक होने पर तथा नक्षत्र अलग-अलग होने से नाड़ी दोष नहीं लगता।
राशि अलग होने से एवं नक्षत्र एक ही होने से नाड़ी दोष नहीं लगता। दोनों की चंद्र राशि का अधिपति एक होने से भी दोष का दुष्प्रभाव नहीं होता। राशि अलग-अलग हो, किंतु राशि स्वामी एक ही हो, तब भी दोष नहीं माना जाता।
गुण मेलापक कुंडली में नाड़ी दोष होने पर यदि राशि स्वामी शुभ ग्रह हो, जैसे गुरु, शुक्र, अंशानुसार चंद् और बुध हो तो नाड़ी दोष नहीं लगता। इसी प्रकार नाड़ी दोष उदासीन होने से अन्य दोष भी उदासीन हो जाते हैं।
गुण मेलापक पद्वति में जिन बातों का वर्णन है, वह आठ प्रकार की होती हैं तथा एक से आठ तक की संख्या के योग पर ऋषियों द्वारा 36 गुण निर्धारित किए गए हैं। ज्योतिष शास्त्र सूचनापरक पद्वति के आधाऱ पर पूर्व सूचना का आभास कराता है। विवाह के पहले वर-कन्या की जन्म कुंडली मिलान का आशय केवल परंपरा का निर्वाह नहीं है,यह भावी दंपत्ति के स्वभाव, गुण,प्यार तथा आचार व्यवहार के सबंध में ज्ञात कराने में सहायक होता है। जब तक समान आचार-विचार वाले वर-कन्या नहीं मिलते,तब तक मैरिज लाइफ सुखी नही हो सकती। जन्मपत्री में मेलापक पद्वति वर-कन्या के स्वभाव, रूप और गुणों को अभिव्यक्त करती है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह पद्वति विशुद्ध विज्ञान पर आधारित है।


आचार्य एल. डी शर्मा
सीनियर पैनलिस्ट
मोबाइल नंबर..919897073500
बेसिक-0565-2403623

Tuesday, September 16, 2008

सटीक एवं सूक्ष्म फलादेश की विधा है कृष्णमूर्ति पद्धति

भारतीय ज्योतिष और कृष्णमूर्ति पद्धति में मुख्य भेद इस बात को लेकर है कि जुड़वां बच्चे, जो चंद मिनट के अंतराल से पैदा होते हैं, उन दोनों की एक लग्न तथा एक समान भावों में ग्रह स्थित होने के बावजूद लक्षण अलग-अलग कैसे हो जाते हैं। पारंपरिक ज्योतिष के अनुसार दोनों के भाग्य एक जैसे होने चाहिए, लेकिन उनके भाग्य में बड़ा अंतर पाया जाता है। एक की मृत्यु हो जाती है, दूसरा लंबी आयु पाता है। या एक कपड़े का व्यापारी होता है तो दूसरा इंजीनियर बन जाता है।
कृष्णमूर्ति ने उप नक्षत्रीय सूत्र देकर इस प्रश्न को सहज ही हल कर दिया है। उन्होंने बताया कि दोनों की कुंडली में मुख्य अंतर भावों के उप नक्षत्रों से आता है। चाहें जन्म कुछ ही मिनट के अंतराल से क्यों न हुआ हो, भावों के उप नक्षत्र बदल जाएंगे। यदि इन उप नक्षत्रों पर विचार किया जाए तो जुड़वां बच्चों के भाग्यों का अंतर विस्तार से समझ सकते हैं। उनके सूत्र से विभिन्न भावों के उप नक्षत्रों को विभिन्न भावों के कारक निश्चित करके जीवन की तमाम घटनाओं के बारे में जान सकते हैं।
मुझे खेद है कि कृष्णमूर्ति के अनुयायी कारकों को उचित स्थान देने में भूल कर रहे हैं व वही भूल दोहरा रहे हैं, जो कुछ मिनटों के अंतर से जन्म लेने वाले बच्चों की कुंडली में फर्क करता है, जिनकी वही लग्न है और ग्रह भी उन्हीं भावों में बैठे हैं।
मान लीजिए कि एक कुंडली में मंगल सिंह राशि में 14 अंश पर है। यह शुक्र के नक्षत्र में तथा शुक्र के ही उप नक्षत्र में होगा। यदि कुंडली में शुक्र बारहवें भाव में है तो यह कहेंगे कि मंगल अपनी दशा में 12 वें भाव का फल प्रदान करेगा, जैसे हानि, व्यय, परेशानी व पराजय इत्यादि। और यही दूसरे की कुंडली में जिसने कुछ मिनट के अंतर से जन्म लिया है,तो क्या शुक्र उसमें भी 12 वें भाव का कारक होकर वही व्यथा-कथा कहेगा। वस्तुतः स्थिति यह नहीं है, क्योंकि अलग-अलग भावों के उप नक्षत्रों पर विचार नहीं किया गया है।
मेरा मानना है कि यदि शुक्र दसवें और 11 वें भाव का उप नक्षत्र है, तब मंगल दसवें एवं 11 वे भाव का फल बताएगा जैसे लाभ, जीत व प्रसन्नता आदि, इस स्थिति के साथ कि मंगल और शुक्र दोनों 12 वें भाव में बैठे हों। दूसरे व्यक्ति जिसने कुछ मिनट के बाद जन्म लिया है, उसका शुक्र 12 वें भाव का उप नक्षत्र हो सकता है, इसलिए उसके लिए मंगल 12वें भाव का कारक होगा। अतः कारकों का निर्धारण करने के लिए विभिन्न भावों के उप नक्षत्रों को चुनना चाहिए। इसके लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना जरूरी है। जैसे-
1-जन्म के समय अथवा प्रश्न के समय के प्रत्येक भाव के सही अंश अंकित करें और प्रत्येक भाव की राशि, नक्षत्र स्वामी और उप नक्षत्र स्वामी अंकित करें।
2-जन्म के समय अथवा प्रश्न के समय के ग्रहों के सही अंश, राशि स्वामी, नक्षत्र स्वामी और उप नक्षत्र स्वामी अंकित करें।
3- हरेक भाव के कारक ग्रहों को भाव के नक्षत्र स्वामी और उप नक्षत्र स्वामी के अनुसार निश्चित करें।
4- सूक्ष्म को अत्यावश्यक स्थान मिलना चाहिए। इसके बाद प्रत्यंतर फिर अंतर और अंत में महादशा को स्थान देना चाहिए।
5-यदि छठे भाव का उप नक्षत्रेश वक्री हो तो यह विपक्षी को बुरा होता है, क्योंकि तब यह विपक्षी के लिए बारहवां स्थान होता है। इसलिए छठे भाव का वक्री उप नक्षत्रेश प्रतिस्पर्धा के कार्यों के लिए शुभ होता है, जहां विपक्षी से मुकाबला हो। इसी प्रकार 4,5,7 एवं 8 भावों को भी समझना चाहिए।
कृष्णमूर्ति ने जो दिशा हमें दी है, वह उनके उक्त कथन के आधार पर ज्योतिष के सत्य को प्रमाणित करने में सक्षम है। आवश्यकता है धैर्य एवं सूक्ष्म बुद्धि से उनके सूत्रों के विवेचन की, जिनमें वास्तविकता एवं सार्थकता स्पष्ट दिखायी देती है।

(लेखक कृष्णमूर्ति जी के विचारों से ही प्रभावित नहीं रहे, बल्कि उनके बताए मार्ग पर चलकर उन्होंने हजारों जातकों को सही मार्गदर्शन दिया है। वर्तमान वह कृष्णमूर्त ज्योतिष पर एक किताब नक्षत्र ज्योतिष लिख रहे हैं, जो शीघ्र प्रकाशित होने वाली है)।

-इंजीनियर रवींद्र नाथ चतुर्वेदी

Thursday, September 11, 2008

महा छप्पन भोग दर्शन १४ को


गोवर्धन में छप्पन भोग के दर्शन को पधारें-

रसिक बंधुवर,
हमारी कामना है कि श्री गिरिराज प्रभु का अलौकिक 16 वां छप्पन भोग महोत्सव एवं महा अभिषेक के अवसर पर आप सपरिवार साक्षी बन प्रभु के दुर्लभ दर्शन कर सहज सुखद अनुभूति का आनंद लें।
आपके आगमन की आकांक्षी
श्री गिरिराज सेवा समिति रजि। मथुरा

गोवर्धन श्री गिरिराज जी में अनंत चतुर्दशी के दिन श्री गिरिराज महाराज का अलौकिक छप्पन भोग 14 सितंबर को हो रहा है। श्री गिरिराज सेवा समिति द्वारा आयोजित होने वाला यह सोलहवां छप्पन भोग आयोजन है, जिसमें देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। आप भी गिरिराज महाराज के इन दुर्लभ दर्शन करके पुण्य लाभ अर्जित कर सकते हैं। यह जानकारी संस्थापक सदस्य मुरारी अग्रवाल ने दी है।

कार्यक्रम-
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महाभिषेक
13 सितंबर 2008
शनिवार प्रातः नौ बजे से

संत सेवा एवं महाप्रसाद
14 सितंबर 08
रविवार दोपहर 12 बजे से सायं 4 बजे तक

श्री छप्पन भोग दर्शन
14 सितंबर 08
रविवार अनंत चतुर्दशी दोपहर 2 बजे से रात्रि 12 बजे तक

स्थानः
गिरिराज तलहटी छप्पन भोग स्थल
संत पं. गया प्रसाद जी की समाधि के निकट
आन्यौर परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,मथुरा

ज्यादा जानकारी को संपर्क करें
09412281056
09837500191
09412777909

Tuesday, September 9, 2008

चमत्कारिक मंदिर है बालाजी मेंहदीपुर

बालाजी मेंहदीपुर के परम भक्त पं.रवींद्र नाथ चतुर्वेदी कृष्णमूर्ति पद्धति के धुरंधर विद्वान भी हैं। निस्वार्थ भाव से ज्योतिष सेवा करने वाले पं.चतुर्वेदी की प्रेरणा से हजारों लोगों ने बालाजी के दरबार में पहुंचकर अपने कष्ट मिटाए हैं। यह मंदिर ऊपरी आत्माओं की मुक्ति से भी छुटकारा दिलाता है।

कहावत है कि चमत्कार को नमस्कार। राजस्थान के दौसा जिले में मेंहदीपुर स्थित बालाजी का चमत्कारिक मंदिर है। बाल स्वरूप हनुमान का स्वरूप ही बालाजी के नाम से पुकारा जाता है। इस मंदिर में तीन देवताओं का वास है।

बाल रूप हनुमान जी
भैरों बाबा
प्रेतराज सरकार
हरेक दर्शनार्थी तीनों देवों के दर्शन कर खुद को कृतार्थ मानते हैं। कामना पूर्ति के लिए यहां अर्जी लगायी जाती है। इसका नियम इस तरह से है। सबसे पहले हलवाई से दरख्वास्त लेते हैं। यह कागज पर लिखी दरख्वास्त नहीं होती अपितु यह एक दौने में छह बूंदी के लड्डू, कुछ बताशे तथा घी का एक छोटा दीपक होता है। जिसकी कीमत ढाई रुपए होती है। यह लेकर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। वहां पुजारी को वह दौना दे देते हैं। पुजारी उस दौने में से कुछ लड्डू-बताशे जल रहे अग्नि कुंड में डालता है, ठीक उसी समय आप अपने मन में ही बालाजी से कहते हैं-बालाजी आपके दरबार में हाजिर हूं। मेरी रक्षा करते रहना। पुजारी शेष दौने को आपको वापस कर देता है। तब उसमें से दो लड्डू निकाल कर अपनी कमीज की जेब में रख लेते हैं। शेष दौने को भैरों जी के मंदिर में पुजारी को दे देते हैं। वह भी उस दौने में से कुछ सामग्री लेकर हवन कुंड में डाल देता है। ठीक उसी समय उनसे भी मन ही मन आप कहते हैं-बाबा आपके दरबार में हाजिर हूं, मेरी रक्षा करते रहना। फिर वही दौना प्रेतराज के दरबार में पुजारी को देते हैं। वहां भी वही प्रक्रिया पुजारी व आप दौहराते हैं। यहां का पुजारी भी शेष दौना दे देता है। वहां एक चबूतरा है, जहां पर वह दौना फैंक देते हैं। मंदिर से बाहर आकर जो लड्डू हनुमान जी के भोग लगाने के बाद जेब में रखे थे, उन्हें निकाल कर खा लेते हैं। यह प्रथम चरण हुआ।

ऐसे लगाते हैं अर्जी---------------
इसकी कीमत 181 रुपए 25 पैसे होती है। इतने रुपए देकर आप हलवाई से अर्जी का सामान ले सकते हैं। हलवाई एक थाल में सवा किलो बूंदी के लड्डू तथा एक कटोरी में घी थाल में रखकर देता है। वह थाल हालाजी के मंदिर में पुजारी को देते हैं। वह कुछ लड्डू व घी भोग के लिए निकाल लेता है। कुछ लड्डू हवन कुंड में डालता है। ठीक उसी समय आपको बालाजी से जो आपकी इच्छा हो, प्रार्थना कर लेनी चाहिए। पुजारी थाल में खाली घी की कटोरी तथा छह लड्डू आपको वापस कर देता है। वह थाल आप सीधे हलवाई को दे दें। हलवाई आपको एक थाल उबले चावलों व दूसरा उबले हुए साबुत उरद का देगा। छह लड्डू में से दो उरद के थाल में रख देगा। दो लड्डू चावल के थाल में रख देगा। दो लड्डू लिफाफे में रखकर दे देगा। उसे प्रायः अपनी जेब में रख लें।
दोनों थालों को लेकर बाहर के रास्ते से भैंरों जी के मंदिर के पुजारी के समक्ष रखते हैं। पुजारी उसमें से कुछ शामग्री हवन कुंड में डलते हैं। ठीक उसी समय भैंरों जी से वही मांगें जो बालाजी से मांगा था। फिर दोनों थाल उठाकर प्रेत राज जी के मंदिर के पुजारी के सामने रखें। जब वह कुछ सामग्री हवन कुंड में डाले तो प्रेत राज जी से भी वही मांगें, जो बालाजी व भैंरों जी से मांगा था। फिर दोनों थाल उठाकर पीछे चबूतरे पर शेष सामग्री डाल देते हैं। तथा दोनों खाली थाल हलवाई को दे देते हैं। हाथ धो कर जो दो लड्डू जेब में रखे थे, उन्हें खा लेते हैं। यह लड्डू अर्जी लगाने वाला ही खाता है। िकसी और को नहीं देना चाहिए।
इसके उपरांत एक दरख्वास्त लेकर फिर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। पुजारी को देते हैं। हवन कुंड में डालते समय प्रार्थना करते हैं। (पहले वाली प्रार्थना को दोहराते हैं। )दो लड्डू दोने से निकाल कर जेब में रख लेते हैं। फिर उसी क्रम से भैंरों जी व प्रेतराज जी से मांगते हैं। दोना फेंक कर नीचे आने पर हनुमान जी के निकाले भोग के लड्डू खा लेते हैं। यहां आपकी अर्जी का क्रम पूरा हो जाता है।
मंदिर छोड़ने तथा घर वापस चलने से पहले चलते समय की एक दरख्वास्त फिर लगाते हैं। इसमें तीनों देवों से पहले बताए क्रम के अनुसार पारिवारिक सुख शांति तथा उनकी कृपा मांगते हैं। यहां बालाजी के भोग लगाने पर जो पहले दो लड्डू निकाले थे, वह नहीं निकालते हैं। फिर वहां से सीधे घर को प्रस्थान कर देते हैं, रुकते नहीं।
भूत प्रेत ग्रस्त व्यक्ति यहां उपरोक्त अनुसार अर्जी लगाता है। यहां भूत प्रेतों को संकट कहते हैं। अर्जी में बालाजी, भैरों जी व प्रेत राज जी से यही कहते हैं कि मेरे ऊपर जो संकट है, उससे मुझे मुक्त करें। तो यहां की अदृश्य शक्तियां क्रियाशील हो जाती हैं और संकट को उस व्यक्ति पर लाकर संकट को विभिन्न तरीकों से कसती हैं, वह संकट को तीन प्रकार की गति देती हैं। एक तो संकट को फांसी दी जाती है। वह संकट भैंरों जी के यहां पीड़ित के शरीर में शीर्ष आसन की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को मुक्त करने का वचन देता है। यह भी बताता है कि यह संकट किस तांत्रिक ने उसे लगाया है या वह स्वयं ही उसके पीछे कब और कहां से लगा है। उस संकट ने उस व्यक्ति का क्या-क्या अहित किया है। फिर उस संकट को फांसी दे दी जाती है। अथवा उस संकट को भंगीवाड़े में जला दिया जाता है। यदि बालाजी समझते हैं कि वह अच्छी आत्मा है तो उसे शुद्ध कर अपने चरणों में बिठा लेते हैं कि वह भजन करे और शक्ति अर्जित करे। और लोगों का अन्य संकटों से उद्धार भी करे। उस व्यक्ति की रक्षार्थ उसे अपने दूत दे देते हैं, जो उसकी रक्षा करते रहते हैं। यह सारा काम यहां स्वचालित अदृश्य शक्तियों द्वारा होता है। किसी जीवित व्यक्ति या पुजारी का कोई योगदान नहीं होता है।
यदि संकट ग्रस्त व्यक्ति यह अर्जी लगाता है कि जो भी संकट उसे परेशान कर रहा है, या कर रहे हैं, बालाजी महाराज उसे कैद कर लें तो वह संकट बालाजी महाराज के यहां कैद हो जाता है और वह उन संकटों से मुक्त हो जाता है।
यहां संकट ग्रस्तों की विभिन्न यातनाओं जैसे कलामुंडी खाते, दौड़-दौड़कर दीवारों में पीठ मारते, धरती पर हाथ मारते, भारी-भारी पत्थर अपने ऊपर रखवाते, अग्नि में तपते इत्यादि देखकर दर्शनार्थी भयभीत हो जाते हैं। किंतु भय का कोई कारण नहीं है। संकटग्रस्त व्यक्ति किसी दर्शनार्थी को कोई हानि नहीं पहुंचाता है। बालाजी महाराज के अदृश्य गण दर्शनार्थी की रक्षा में तत्पर रहते हैं। जो दर्शनार्थी अपने किसी कार्य के लिए अर्जी लगाता है, तथा यह भी बालाजी से कहता है कि मेरा काम हो जाने पर सवा मनी करूंगा तो कार्य पूरा हो जाने पर वह सवा मनी लगाता है। सवा मनी करने के लिए मंदिर के पुजारी जो श्री राम जानकी मंदिर में बैठते हैं, उन्हें सवा मनी के पैसे जमा कराने होते हैं। यह दो प्रकार की होती है। एक, लड्डू पूड़ी, दूसरी हलुवा-पूड़ी। पुजारी उन्हें उस कीमत की रसीद दे देता है तथा बारह बजे मंदिर में प्रसाद लगाने के बाद आपको प्रसाद दिया जाता है। प्रसाद को अपने परिजनों व साथियों के लिए मंदिर से धर्मशाला में ले जाकर सेवन करना चाहिए। इस मंदिर में एक विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि मंदिर में लगाया गया भोग प्रसाद न कोई किसी को देता है और न ही कोई दूसरा खाता है। इस मंदिर में लगाया प्रसाद अपने घर भी नहीं ले जाया जाता। केवल मेवा मिश्री का भोग ही ले जा सकते हैं। यहां करीब तीन सौ धर्मशाला हैं और भोजन की अच्छी व्यवस्था है।

जल स्रोत एवं जल संग्रह कहां करें

जल सभी के जीवन के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। किसी भी भवन में जल स्रोत जैसे बोरिंग, हैंडपंप, कुआं आदि किस दिशा में बनाया जाए। जल संग्रह वाली टंकी कहां रखी जाए या बनायी जाए, इसका पहले ही निर्धारण करने से जीवन भर सुकून और सुख मिलता है। आपको बता दें कि भूमिगत जल स्रोत या नल लगाने के लिए सबसे अनुकूल भाग भूखड का ईशान कोण होता है। बोरिंग पूर्व दिशा में है तो सुख-समृद्धि, पश्चिम में भूमि-संपत्ति लाभ, उत्तर में शांत व सुखी जीवन, दक्षिण में दम्पत्य सुख की हानि, ईशान में धन समृद्धि में उत्तरोत्तर वृद्धि, वायव्य में विवाद व कष्टमय जीवन, आग्नेय में संतान कष्ट, नैऋत्य में अकाल मृत्यु भय तथा मध्य भाग में बोरिंग कराने पर धन हानि होती रहती है। पानी की टंकी वायव्य कोण में रखनी चाहिए। अतः बोरिंग कराने से पहले एक बार वास्तु विचार करना जीवन भर के लिए सुखकारक हो सकता है।