Tuesday, September 16, 2008

सटीक एवं सूक्ष्म फलादेश की विधा है कृष्णमूर्ति पद्धति

भारतीय ज्योतिष और कृष्णमूर्ति पद्धति में मुख्य भेद इस बात को लेकर है कि जुड़वां बच्चे, जो चंद मिनट के अंतराल से पैदा होते हैं, उन दोनों की एक लग्न तथा एक समान भावों में ग्रह स्थित होने के बावजूद लक्षण अलग-अलग कैसे हो जाते हैं। पारंपरिक ज्योतिष के अनुसार दोनों के भाग्य एक जैसे होने चाहिए, लेकिन उनके भाग्य में बड़ा अंतर पाया जाता है। एक की मृत्यु हो जाती है, दूसरा लंबी आयु पाता है। या एक कपड़े का व्यापारी होता है तो दूसरा इंजीनियर बन जाता है।
कृष्णमूर्ति ने उप नक्षत्रीय सूत्र देकर इस प्रश्न को सहज ही हल कर दिया है। उन्होंने बताया कि दोनों की कुंडली में मुख्य अंतर भावों के उप नक्षत्रों से आता है। चाहें जन्म कुछ ही मिनट के अंतराल से क्यों न हुआ हो, भावों के उप नक्षत्र बदल जाएंगे। यदि इन उप नक्षत्रों पर विचार किया जाए तो जुड़वां बच्चों के भाग्यों का अंतर विस्तार से समझ सकते हैं। उनके सूत्र से विभिन्न भावों के उप नक्षत्रों को विभिन्न भावों के कारक निश्चित करके जीवन की तमाम घटनाओं के बारे में जान सकते हैं।
मुझे खेद है कि कृष्णमूर्ति के अनुयायी कारकों को उचित स्थान देने में भूल कर रहे हैं व वही भूल दोहरा रहे हैं, जो कुछ मिनटों के अंतर से जन्म लेने वाले बच्चों की कुंडली में फर्क करता है, जिनकी वही लग्न है और ग्रह भी उन्हीं भावों में बैठे हैं।
मान लीजिए कि एक कुंडली में मंगल सिंह राशि में 14 अंश पर है। यह शुक्र के नक्षत्र में तथा शुक्र के ही उप नक्षत्र में होगा। यदि कुंडली में शुक्र बारहवें भाव में है तो यह कहेंगे कि मंगल अपनी दशा में 12 वें भाव का फल प्रदान करेगा, जैसे हानि, व्यय, परेशानी व पराजय इत्यादि। और यही दूसरे की कुंडली में जिसने कुछ मिनट के अंतर से जन्म लिया है,तो क्या शुक्र उसमें भी 12 वें भाव का कारक होकर वही व्यथा-कथा कहेगा। वस्तुतः स्थिति यह नहीं है, क्योंकि अलग-अलग भावों के उप नक्षत्रों पर विचार नहीं किया गया है।
मेरा मानना है कि यदि शुक्र दसवें और 11 वें भाव का उप नक्षत्र है, तब मंगल दसवें एवं 11 वे भाव का फल बताएगा जैसे लाभ, जीत व प्रसन्नता आदि, इस स्थिति के साथ कि मंगल और शुक्र दोनों 12 वें भाव में बैठे हों। दूसरे व्यक्ति जिसने कुछ मिनट के बाद जन्म लिया है, उसका शुक्र 12 वें भाव का उप नक्षत्र हो सकता है, इसलिए उसके लिए मंगल 12वें भाव का कारक होगा। अतः कारकों का निर्धारण करने के लिए विभिन्न भावों के उप नक्षत्रों को चुनना चाहिए। इसके लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना जरूरी है। जैसे-
1-जन्म के समय अथवा प्रश्न के समय के प्रत्येक भाव के सही अंश अंकित करें और प्रत्येक भाव की राशि, नक्षत्र स्वामी और उप नक्षत्र स्वामी अंकित करें।
2-जन्म के समय अथवा प्रश्न के समय के ग्रहों के सही अंश, राशि स्वामी, नक्षत्र स्वामी और उप नक्षत्र स्वामी अंकित करें।
3- हरेक भाव के कारक ग्रहों को भाव के नक्षत्र स्वामी और उप नक्षत्र स्वामी के अनुसार निश्चित करें।
4- सूक्ष्म को अत्यावश्यक स्थान मिलना चाहिए। इसके बाद प्रत्यंतर फिर अंतर और अंत में महादशा को स्थान देना चाहिए।
5-यदि छठे भाव का उप नक्षत्रेश वक्री हो तो यह विपक्षी को बुरा होता है, क्योंकि तब यह विपक्षी के लिए बारहवां स्थान होता है। इसलिए छठे भाव का वक्री उप नक्षत्रेश प्रतिस्पर्धा के कार्यों के लिए शुभ होता है, जहां विपक्षी से मुकाबला हो। इसी प्रकार 4,5,7 एवं 8 भावों को भी समझना चाहिए।
कृष्णमूर्ति ने जो दिशा हमें दी है, वह उनके उक्त कथन के आधार पर ज्योतिष के सत्य को प्रमाणित करने में सक्षम है। आवश्यकता है धैर्य एवं सूक्ष्म बुद्धि से उनके सूत्रों के विवेचन की, जिनमें वास्तविकता एवं सार्थकता स्पष्ट दिखायी देती है।

(लेखक कृष्णमूर्ति जी के विचारों से ही प्रभावित नहीं रहे, बल्कि उनके बताए मार्ग पर चलकर उन्होंने हजारों जातकों को सही मार्गदर्शन दिया है। वर्तमान वह कृष्णमूर्त ज्योतिष पर एक किताब नक्षत्र ज्योतिष लिख रहे हैं, जो शीघ्र प्रकाशित होने वाली है)।

-इंजीनियर रवींद्र नाथ चतुर्वेदी

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