Tuesday, September 9, 2008

चमत्कारिक मंदिर है बालाजी मेंहदीपुर

बालाजी मेंहदीपुर के परम भक्त पं.रवींद्र नाथ चतुर्वेदी कृष्णमूर्ति पद्धति के धुरंधर विद्वान भी हैं। निस्वार्थ भाव से ज्योतिष सेवा करने वाले पं.चतुर्वेदी की प्रेरणा से हजारों लोगों ने बालाजी के दरबार में पहुंचकर अपने कष्ट मिटाए हैं। यह मंदिर ऊपरी आत्माओं की मुक्ति से भी छुटकारा दिलाता है।

कहावत है कि चमत्कार को नमस्कार। राजस्थान के दौसा जिले में मेंहदीपुर स्थित बालाजी का चमत्कारिक मंदिर है। बाल स्वरूप हनुमान का स्वरूप ही बालाजी के नाम से पुकारा जाता है। इस मंदिर में तीन देवताओं का वास है।

बाल रूप हनुमान जी
भैरों बाबा
प्रेतराज सरकार
हरेक दर्शनार्थी तीनों देवों के दर्शन कर खुद को कृतार्थ मानते हैं। कामना पूर्ति के लिए यहां अर्जी लगायी जाती है। इसका नियम इस तरह से है। सबसे पहले हलवाई से दरख्वास्त लेते हैं। यह कागज पर लिखी दरख्वास्त नहीं होती अपितु यह एक दौने में छह बूंदी के लड्डू, कुछ बताशे तथा घी का एक छोटा दीपक होता है। जिसकी कीमत ढाई रुपए होती है। यह लेकर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। वहां पुजारी को वह दौना दे देते हैं। पुजारी उस दौने में से कुछ लड्डू-बताशे जल रहे अग्नि कुंड में डालता है, ठीक उसी समय आप अपने मन में ही बालाजी से कहते हैं-बालाजी आपके दरबार में हाजिर हूं। मेरी रक्षा करते रहना। पुजारी शेष दौने को आपको वापस कर देता है। तब उसमें से दो लड्डू निकाल कर अपनी कमीज की जेब में रख लेते हैं। शेष दौने को भैरों जी के मंदिर में पुजारी को दे देते हैं। वह भी उस दौने में से कुछ सामग्री लेकर हवन कुंड में डाल देता है। ठीक उसी समय उनसे भी मन ही मन आप कहते हैं-बाबा आपके दरबार में हाजिर हूं, मेरी रक्षा करते रहना। फिर वही दौना प्रेतराज के दरबार में पुजारी को देते हैं। वहां भी वही प्रक्रिया पुजारी व आप दौहराते हैं। यहां का पुजारी भी शेष दौना दे देता है। वहां एक चबूतरा है, जहां पर वह दौना फैंक देते हैं। मंदिर से बाहर आकर जो लड्डू हनुमान जी के भोग लगाने के बाद जेब में रखे थे, उन्हें निकाल कर खा लेते हैं। यह प्रथम चरण हुआ।

ऐसे लगाते हैं अर्जी---------------
इसकी कीमत 181 रुपए 25 पैसे होती है। इतने रुपए देकर आप हलवाई से अर्जी का सामान ले सकते हैं। हलवाई एक थाल में सवा किलो बूंदी के लड्डू तथा एक कटोरी में घी थाल में रखकर देता है। वह थाल हालाजी के मंदिर में पुजारी को देते हैं। वह कुछ लड्डू व घी भोग के लिए निकाल लेता है। कुछ लड्डू हवन कुंड में डालता है। ठीक उसी समय आपको बालाजी से जो आपकी इच्छा हो, प्रार्थना कर लेनी चाहिए। पुजारी थाल में खाली घी की कटोरी तथा छह लड्डू आपको वापस कर देता है। वह थाल आप सीधे हलवाई को दे दें। हलवाई आपको एक थाल उबले चावलों व दूसरा उबले हुए साबुत उरद का देगा। छह लड्डू में से दो उरद के थाल में रख देगा। दो लड्डू चावल के थाल में रख देगा। दो लड्डू लिफाफे में रखकर दे देगा। उसे प्रायः अपनी जेब में रख लें।
दोनों थालों को लेकर बाहर के रास्ते से भैंरों जी के मंदिर के पुजारी के समक्ष रखते हैं। पुजारी उसमें से कुछ शामग्री हवन कुंड में डलते हैं। ठीक उसी समय भैंरों जी से वही मांगें जो बालाजी से मांगा था। फिर दोनों थाल उठाकर प्रेत राज जी के मंदिर के पुजारी के सामने रखें। जब वह कुछ सामग्री हवन कुंड में डाले तो प्रेत राज जी से भी वही मांगें, जो बालाजी व भैंरों जी से मांगा था। फिर दोनों थाल उठाकर पीछे चबूतरे पर शेष सामग्री डाल देते हैं। तथा दोनों खाली थाल हलवाई को दे देते हैं। हाथ धो कर जो दो लड्डू जेब में रखे थे, उन्हें खा लेते हैं। यह लड्डू अर्जी लगाने वाला ही खाता है। िकसी और को नहीं देना चाहिए।
इसके उपरांत एक दरख्वास्त लेकर फिर बालाजी के मंदिर में जाते हैं। पुजारी को देते हैं। हवन कुंड में डालते समय प्रार्थना करते हैं। (पहले वाली प्रार्थना को दोहराते हैं। )दो लड्डू दोने से निकाल कर जेब में रख लेते हैं। फिर उसी क्रम से भैंरों जी व प्रेतराज जी से मांगते हैं। दोना फेंक कर नीचे आने पर हनुमान जी के निकाले भोग के लड्डू खा लेते हैं। यहां आपकी अर्जी का क्रम पूरा हो जाता है।
मंदिर छोड़ने तथा घर वापस चलने से पहले चलते समय की एक दरख्वास्त फिर लगाते हैं। इसमें तीनों देवों से पहले बताए क्रम के अनुसार पारिवारिक सुख शांति तथा उनकी कृपा मांगते हैं। यहां बालाजी के भोग लगाने पर जो पहले दो लड्डू निकाले थे, वह नहीं निकालते हैं। फिर वहां से सीधे घर को प्रस्थान कर देते हैं, रुकते नहीं।
भूत प्रेत ग्रस्त व्यक्ति यहां उपरोक्त अनुसार अर्जी लगाता है। यहां भूत प्रेतों को संकट कहते हैं। अर्जी में बालाजी, भैरों जी व प्रेत राज जी से यही कहते हैं कि मेरे ऊपर जो संकट है, उससे मुझे मुक्त करें। तो यहां की अदृश्य शक्तियां क्रियाशील हो जाती हैं और संकट को उस व्यक्ति पर लाकर संकट को विभिन्न तरीकों से कसती हैं, वह संकट को तीन प्रकार की गति देती हैं। एक तो संकट को फांसी दी जाती है। वह संकट भैंरों जी के यहां पीड़ित के शरीर में शीर्ष आसन की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को मुक्त करने का वचन देता है। यह भी बताता है कि यह संकट किस तांत्रिक ने उसे लगाया है या वह स्वयं ही उसके पीछे कब और कहां से लगा है। उस संकट ने उस व्यक्ति का क्या-क्या अहित किया है। फिर उस संकट को फांसी दे दी जाती है। अथवा उस संकट को भंगीवाड़े में जला दिया जाता है। यदि बालाजी समझते हैं कि वह अच्छी आत्मा है तो उसे शुद्ध कर अपने चरणों में बिठा लेते हैं कि वह भजन करे और शक्ति अर्जित करे। और लोगों का अन्य संकटों से उद्धार भी करे। उस व्यक्ति की रक्षार्थ उसे अपने दूत दे देते हैं, जो उसकी रक्षा करते रहते हैं। यह सारा काम यहां स्वचालित अदृश्य शक्तियों द्वारा होता है। किसी जीवित व्यक्ति या पुजारी का कोई योगदान नहीं होता है।
यदि संकट ग्रस्त व्यक्ति यह अर्जी लगाता है कि जो भी संकट उसे परेशान कर रहा है, या कर रहे हैं, बालाजी महाराज उसे कैद कर लें तो वह संकट बालाजी महाराज के यहां कैद हो जाता है और वह उन संकटों से मुक्त हो जाता है।
यहां संकट ग्रस्तों की विभिन्न यातनाओं जैसे कलामुंडी खाते, दौड़-दौड़कर दीवारों में पीठ मारते, धरती पर हाथ मारते, भारी-भारी पत्थर अपने ऊपर रखवाते, अग्नि में तपते इत्यादि देखकर दर्शनार्थी भयभीत हो जाते हैं। किंतु भय का कोई कारण नहीं है। संकटग्रस्त व्यक्ति किसी दर्शनार्थी को कोई हानि नहीं पहुंचाता है। बालाजी महाराज के अदृश्य गण दर्शनार्थी की रक्षा में तत्पर रहते हैं। जो दर्शनार्थी अपने किसी कार्य के लिए अर्जी लगाता है, तथा यह भी बालाजी से कहता है कि मेरा काम हो जाने पर सवा मनी करूंगा तो कार्य पूरा हो जाने पर वह सवा मनी लगाता है। सवा मनी करने के लिए मंदिर के पुजारी जो श्री राम जानकी मंदिर में बैठते हैं, उन्हें सवा मनी के पैसे जमा कराने होते हैं। यह दो प्रकार की होती है। एक, लड्डू पूड़ी, दूसरी हलुवा-पूड़ी। पुजारी उन्हें उस कीमत की रसीद दे देता है तथा बारह बजे मंदिर में प्रसाद लगाने के बाद आपको प्रसाद दिया जाता है। प्रसाद को अपने परिजनों व साथियों के लिए मंदिर से धर्मशाला में ले जाकर सेवन करना चाहिए। इस मंदिर में एक विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि मंदिर में लगाया गया भोग प्रसाद न कोई किसी को देता है और न ही कोई दूसरा खाता है। इस मंदिर में लगाया प्रसाद अपने घर भी नहीं ले जाया जाता। केवल मेवा मिश्री का भोग ही ले जा सकते हैं। यहां करीब तीन सौ धर्मशाला हैं और भोजन की अच्छी व्यवस्था है।

1 comment:

shashaank786 said...

bahut acha prayash thank you