Friday, August 15, 2008

सैक्स से ज्यादा बिक रहा है ज्योतिष, क्यों...??

इन दिनों भारत ही नहीं, विश्व समुदाय ज्योतिष और आध्यात्म की ओर तेजी से बढ़ रहा है। कोई समाचार पत्र हो, कोई टीवी चैनल, ज्योतिष, धर्म और आध्यात्म की चर्चा हर ओर है। खगोलीय घटनाओं से लेकर भूकंप व मौसम जैसे मामलों में भी ज्योतिष का आकलन प्रमुखता से लिया जा रहा है। कम्प्यूटर ने इस मरते हुए साहित्य को जिंदा किया था तो इंटरनेट ने इसे संजीवनी प्रदान कर दी है। सैकड़ों सालों तक रिसर्च से दूर रहा यह सब्जेक्ट अब नयी पीढ़ी के लिए भी महत्वपूर्ण होता जा रहा है। विभिन्न प्रख्यात समाचार एजेंसियों के सर्वे से यह भी तथ्य उभरा है कि सबसे अधिक ज्योतिष साहित्य, वास्तु, तंत्र-मंत्र, योग और अध्यात्म बिक रहा है। उसके बाद सैक्स और तीसरे नंबर पर अपराध साहित्य आता है। तो यहां यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर ऐसा क्या है ज्योतिष शास्त्र में।
यहां यह जानना जरूरी है कि पूरे जगत का जीवन समय से संचालित है। कितना महान है समय कि यह सबको समान हिस्से में मिला हुआ है, कितना विद्रूप है इसका कि किसी के पास समय नहीं और किसी के पास इतना समय है कि वह पूरा जीवन व्यर्थ कर देता है। शुभ भी है समय और अशुभ भी है। या यह कहें कि अपने समय को हम ही बनाते हैं। शुभ-अशुभ समय का अनुमान, सही समय में सही कार्य करने की बुद्धि एवं समय का संयमन हमें ज्योतिष से ही प्राप्त होता है। तो क्या समय से ही बना है जीवन। कहते हैं कि समय के स्वरूप का ज्ञान कर लेने के बाद अगर उसी के अनुरूप आचरण कर लो तो सफलता को स्वयं समय भी नहीं रोक सकता।
महाबली भीम में दस हजार हाथियों का बल था, किंतु समय की गति को समझते हुए उन्होंने राजा विराट के यहां रसोइए की नौकरी करके अशुभ समय को न केवल बुद्धिमता पूर्वक निकाल दिया, बल्कि उस अज्ञातवास में कीचक वध जैसी महान उपलब्धि भी हासिल की थी।
वेदांग ज्योतिष में ज्योतिष को काल विधायक शास्त्र बतलाया गया है। छह वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोच्च स्थान दिया गया है। यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कि ज्योतिष जिज्ञासुओं के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे अपनी जन्म राशि पर विश्वास करें कि नाम राशि पर। इस संबंध में ज्योतिष शास्त्र इस प्रकार निर्देश देता है....
विद्यारम्भे विवाहे च सर्व संस्कार कर्मेषु।
जन्म राशि प्रधानत्वं नाम राशि न चिंतयेत।।
इसका मतलब यह है कि एजूकेशन शुरू करने में, शादी में, यज्ञोपवीत आदि मूल संस्कारित कार्यों में जन्म राशि की प्रधानता होती है, नाम राशि का विचार नहीं करना चाहिए, किंतु..

गृहे ग्रामे, खले, क्षेत्रे, व्यापार कर्माणि।
नामराशि प्रधानत्वं जन्म राशि न चिंतयते।।

इसका अर्थ यह है कि यात्रा में, व्यापार आदि दैनिक कार्यों में नाम राशि प्रधान है न कि जन्म राशि। जहां तक इस मामले में मेरे 45 वर्षों से अधिक के अध्ययन का व्यावहारिक अनुभव है, उसके अनुसार जिस नाम के लेने से सोया हुआ आदमी नींद से जाग जाए, जिस नाम से उसके रोजमर्रा के कार्यों का गहरा संबंध हो, वही अक्षर प्रधान राशि उस आदमी के भूत, भविष्य व वर्तमान को निर्धारित करती है। पश्चिम के प्रकांड विद्वान एलिन लियो का भी यही विश्वास था, जो मेरे अनुभव से साबित हो रहा है।
ज्योतिष में कई अन्य स्तंभ हैं जैसे अंग स्फुरण, अंग संचालन, हस्त सामुद्रिक शास्त्र, मस्तक रेखा, पाद रेखा आदि भी महत्वपूर्ण जानकारी दे देते हैं। श्री रामचरित मानस के अनुसार-
आगे परा जटायू देखा,
सुमिरत राम चस की रेखा।

इससे भी साबित होता है कि गिद्ध राज पाद रेखा विद्य़ा के विद्वान ज्ञाता थे। समय का सम्यक ज्ञान ही ज्योतिष है। श्रीराम चरित मानस में कई जगह समय की महिमा बतायी गयी है।
समय जानि गुरु आयसु पाई
संध्या करन चले दोउ भाई।।
विश्वामित्र समय शुभ जानी
बोले अति सनेह मय वानी।।
उठहु राम भंजहु भव चाप
मेटहु तात जनक परिताप।।
आदि आदि..
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ज्योतिष एक संपूर्ण वैज्ञानिक शास्त्र है। इसमें दो और दो चार ही होते हैं। आवश्यकता है गंभीर एवं व्यावहारिक अद्यययन, धैर्य, अथक पिरश्रम, शास्त्रीय किताबों का अच्छा संग्रह, मनन, सामुदिक्र लक्षणों का अध्ययन और स्वयं भविष्यवक्ता का संस्कारित और संयमित जीवन, तभी इस विषय में आगे बढ़ा जा सकता है। जहां तक तंत्र शास्त्र का सवाल है, यह महान समुद्र है। इसमें जितने गहरे गोते लगाए जाएंगे, उतने उत्कृष्ट मोती प्राप्त होंगे।

हरेंद्र पाल सिंह
सेवानिवृत्त पीसीएस, उत्तर प्रदेश सरकार

Tuesday, August 12, 2008

हमारे साथ मनाइए लाड़ले कन्हैया की जन्माष्टमी

भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव आ रहा है घर-घर में होती है पूजा, किंतु इस साल आप जन्मोत्सव करिए हमारे साथ...विधि-विधान से...हम बताएंगे 20 अगस्त को कि किन मंत्रोच्चार के साथ किस विधि से करें अपने लाड़ले कन्हैया का जन्म..कि उसकी कृपा बरसती रहे बरस भर आपके जीवन आंगन में...

डरो नहीं यह चंद्र ग्रहण है

ग्रहण को लेकर इन दिनों मीडिया ने जनमानस में एक प्रकार से भय पैदा कर रखा है। तमाम न्यूज चैनल पर खबरों से ज्यादा ज्योतिष और धर्म बिक रहा है। एक अगस्त को सूर्य ग्रहण था तो अब 16-17 की रात्रि में चंद्र ग्रहण का योग पड़ रहा है। यह ठीक है कि शास्त्रों में ग्रहण के फल वर्णित हैं और हर राशि पर इसका विशेष असर पड़ता है, किंतु भयभीत कर देना कदापि ठीक नहीं कहा जा सकता। ऐसा विगत सालों में कई बार हुआ है, जब एक साल में अथवा एक पखवाड़े में दो-दो ग्रहण का योग पड़ा है।
यह एक प्राकृतिक घटना है। एक साल में इनकी संख्या औसत से ज्यादा होने पर ही अनिष्ट की आशंका करनी चाहिए। एक साल में अधिकतम दो चंद्र ग्रहण हो सकते हैं। हिंदी महीने में यानि अमावस्या से अमावस्या तक पहले चंद्र ग्रहण और फिर सूर्य ग्रहण पड़े तो अनहोनी की आशंका समझनी चाहिए, जबकि वर्तमान अगस्त माह में पहले सूर्य ग्रहण और अब चंद्र ग्रहण पड़ रहा है। यह न तो किसी देश के लिए खराब है और न ही किसी राज्य के लिए।

सामूहिक प्रभाव
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फिर भी सूर्य ग्रहण कर्क राशि में और चंद्र ग्रहण कुंभ राशि में पड़ने से खाद्य पदार्थ में मंहगाई, उपद्रव, आगजनी, विस्फोट,
बुजुर्ग,चिकित्सक एवं सरकारी कर्मियों को परेशानी हो सकती हैं।

मेरा क्या होगा पंडित जी---------------
चंद्र ग्रहण मेष में शुभ,वृष, कन्या व वृशि्चक में मध्यम, मिथुन व तुला में अशुभ, कर्क व सिंह में दाम्पत्य कष्ट तथा धनु व मीन में दोनों प्रकार के फल और मकर व कुंभ राशि वालों को बड़े दुख देने वाला है।

क्या मुझे नहीं देखना है-----------------
हां। गभर्वती स्त्रियों, मानसिक परिश्रम करने वालों, रोगियों, रोडियो, क्रीमो थैरेपी कराने वाले मरीजों आदि को ग्रहण देखने से परहेज करना है।

तो मैं क्या करूं
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शुभ व मध्य प्रभाव वाली राशियों के जातक अपने इष्ट देवी-देवता के मंत्र जाप व हवन करें। यथा शिक्त दान दें। अशुभ प्रबाव वाले जातक अपने पंडित-पुरोहित व आचार्यों से मार्गदर्शन लेकर विशेष जाप व हवन करें। ग्रहों की प्रतिनिधि जड़ी-बूटियों से हवन करें। विशेष दान दें और चाहें फैमिली पंडित डॉट कॉम अथवा फैमिली पंडित डॉट ब्लागसपाट डॉट कॉम पर सवाल भेजें। जवाब फ्री मिलेगा।

एफपीसी टीम

Saturday, August 2, 2008

यातायात दुर्घटना कराएगा सूर्य ग्रहण

Jul 30, 11:28 pm(Dainik Jagran)

मथुरा। भारत की कुंडली में तृतीय स्थान तथा कर्क राशि में पड़ने वाला सूर्य ग्रहण यातायात दुर्घटनाओं को जन्म देगा। संभव है सार्वजनिक वाहनों पर आतंकी हमले भी हो जाएं। इससे जन सामान्य की हानि होगी। दो घंटे लंबे ग्रहण में पुण्य कमाने की सलाह दी गयी है।

फैमिली पंडित डाट कॉम के पैनलिस्ट तथा नगर के प्रख्यात ज्योतिषी इस समेत एक पखवाड़े में दो ग्रहण के दुष्प्रभावों पर एकमत हैं। उनका कहना है कि सूर्य ग्रहण जहां सत्ता में बैठे लोगों के लिए ठीक नहीं है, वहीं प्राकृतिक असंतुलन और यातायात दुर्घटना को जन्म देने वाला है। अमावस्या शुक्रवार को सायं चार बजकर छह मिनट से पांच बजकर 58 मिनट तक चलने वाले इस ग्रहण का सूतक शुक्रवार को सुबह 4.06 बजे से लगेगा। बालक, वृद्धि व रोगी दोपहर एक बजे तक भोजन आदि कर सकेंगे। ग्रह शक्ति पत्रिका के संपादक प्रदीप सक्सेना कहते हैं कि इस समय आतंकी घटनाओं को लेकर जो भय का माहौल बना हुआ है, उसकी ग्रहण बाद पुनरावृत्ति हो सकती है। ज्योतिषी हरेंद्र पाल सिंह के मुताबिक यह ग्रहण राष्ट्रीय अनिष्टकारी घटनाओं को जन्म देगा। ओमप्रकाश गौतम के मुताबिक यह ग्रहण कर्क राशि वालों को विशेष कष्टकारी होगा। मथुरस्थ सर्व कर्म पांडित्य समिति के अध्यक्ष अशोक पाठक तथा दीपक भागवत ज्योतिष संस्थान के आचार्य कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी के मुताबिक मिथुन, वृश्चिक, धनु व मकर राशि वालों को अशुभ तथा सिंह, मीन, मेष राशियों पर मध्यम असर डालेगा। कन्या, कुम्भ, तुला तथा वृष राशि वालों को शुभ फल मिलेगा। युवा ज्योतिषी आदित्य कृष्ण व लखन परिहार के मुताबिक एक माह में दो ग्रहण अशुभ हैं। प्राकृतिक आपदा से जनता दु:खी रहेगी। ग्रहणों का असर उथल-पुथल मचाने वाला होगा।

श्रीजी पीठाचार्य मनीष शंकर शास्त्री व अजय तैलंग ने लोगों से सूर्य ग्रहण के समय सूर्य उपासना तथा गायत्री जप करने की सलाह दी है। काले तिल, उड़द, लाल मसूर, चावल व वस्त्रों का दान शुभ फलदायी रहेगा।

अब जो जन्मेंगे, होंगे काल सर्प से पीड़ित

Aug 01, 11:48 pm (Dainik Jagran)

मथुरा। अगले पांच महीने तक जो भी बालक जन्म लेंगे, उन्हें काल सर्प योग का दंश झेलना पड़ेगा। पूर्व जन्म के कर्म फलों के अनुसार पड़ने वाले इस योग के प्रति जागरुकता बढ़ने के बावजूद डिलीवरी मामलों में ज्योतिषीय सलाह मुताबिक भी इससे नहीं बचा जा सकेगा। ज्योतिष के आधार पर डिलीवरी कराने की प्रथा चल निकली है, मगर 23 जुलाई से गोचर में बने काल सर्प योग से बचना असंभव ही है। लिहाजा डिलीवरी मामलों में ज्योतिषी भी अब अन्य योगों का सहारा लेकर यजमानों की मंशा पूरी करने में लगे हैं। पिछले जन्मों में दूसरों के धन हड़पने, सर्प दोष तथा पितृ दोष से बनने वाला यह योग अगले दिसंबर माह के अंत तक चलेगा। जाहिर है इस अवधि में पैदा होने वाले बालक काल सर्प दोष से पीड़ित होंगे।

जीवन में भारी संघर्ष और उतार-चढ़ाव के बाद सफलता देने वाले इस योग की शांति का भी यह समय चल रहा है। नाग पंचमी पर मथुरा-वृंदावन में कई जातकों ने इसकी शांति करायी और कइयों ने जिंदा सांप जंगल में छुड़वाए और अगस्त माह की अमावस्या को भी वृंदावन में इसकी शांति के अनुष्ठान हो रहे हैं, लेकिन अब जो बालक जन्म लेंगे, उनके काल सर्प योग होना निश्चित है। ज्योतिषियों के मुताबिक इस समय कर्क राशि में केतु के साथ-साथ सूर्य, शुक्र, बुध, सिंह में शनि व मंगल, धनु में गुरु, मकर में राहू गति कर रहा है। आने वाले महीनों में भी कुछ ग्रह जो स्थान परिवर्तन करेंगे, लेकिन राहू-केतु से बाहर नहीं जा पाएंगे। ज्योतिर्विद आचार्य एलडी शर्मा व हरेंद्र पाल सिंह के मुताबिक वासुकी, कर्कोटक, महापद्म, तक्षक, शंखपाल, शेष नाग, पद्म, कुलिक, शंखनाद, अनंत, पातक व विषाक्त समेत 12 प्रकार के काल सर्प योग बनते हैं, जिनसे कुल 288 प्रकार से काल सर्प योग बन जाता है। हालांकि ज्योतिष शास्त्र में इसका कहीं-कहीं उल्लेख है, लेकिन दक्षिण भारत में इसकी पहचान काफी पहले कर ली गयी थी। इसके दुष्प्रभाव का अध्ययन करने के बाद उत्तर भारत में भी इसके बारे में जागरुकता बढ़ी है। उनके अनुसार इससे पीड़ित जातकों की अपनी जिंदगी नहीं होती। वे हमेशा दूसरों के लिए जीते हैं और भारी उतार-चढ़ाव व संघर्ष का जीवन भोगते हैं। आचार्य आदित्य कृष्ण के अनुसार पितृ शांति के लिए श्रीमद् भागवत तथा काल सर्प दोष की शांति न कराने पर यह योग पीढि़यों में ट्रांसफर होता रहता है। इसकी शांति के पश्चात कुंडली अपने नैसर्गिक प्रभाव को देने लगती है।